पधारो म्हारे आंगणिए भजन
पधारो म्हारे आंगणिए भजन
पधारो म्हारे आंगणिए
दादीजी थारो खूब करा मनुहार जी
पधारो म्हारे आंगणिए
जगदम्बा थारो खूब करां मनुहार जी
पधारो म्हारे आंगणिए
सती दादी थारो खूब करां मनुहार जी
पधारो म्हारे आंगणिए
गंगाजल की झारी ल्यायो
चांदी की चौकी मंगवायो
मइया थारा देऊं चरण पखार जी
ओ दादी.. थारा देऊं चरण पखार जी
पधारो म्हारे आंगणिए
जगदम्बा थारो खूब करां मनुहार जी
पधारो म्हारे आंगणिए
पधारो म्हारे आंगणिए
जगदम्बा थारो खूब करां मनुहार जी
पधारो म्हारे आंगणिए
सती दादी थारो खूब करां मनुहार जी
पधारो म्हारे आंगणिए
गंगाजल की झारी ल्यायो
चांदी की चौकी मंगवायो
मइया थारा देऊं चरण पखार जी
ओ दादी.. थारा देऊं चरण पखार जी
पधारो म्हारे आंगणिए
जगदम्बा थारो खूब करां मनुहार जी
पधारो म्हारे आंगणिए
जानिये रानी शक्ति के बारे में : राजस्थान के सीकर जिले से लगभग ८० किलोमीटर दूर झुंझुनू में रानी सती का मंदिर है जो लगभग ४०० वर्ष पुराना है। श्रद्धालुओं के लिए यह एक प्रमुख आस्था का केंद्र है। पुरे राजस्थान से श्रद्धालु शनिवार और रविवार को मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। भाद्रपक्ष की अमावश्या में आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठान का बहुत ही मतत्व है। इसके लिये दूर दूर से लोग आगे हैं। रानी सती का एक मुख्य मंदिर और १२ अन्य छोटे मंदिर यहाँ स्थापित है। यूँ तो पुरे मंदिर में कई देवी देवताओं की मूर्तियां लगी हुयी हैं जैसे शिव जी हनुमान जी आदि लेकिन मंदिर में प्रमुख आकर्षण का केंद्र षोडश माता की मूर्ति है जिसमें १६ देविओं की मूर्ति लगी स्थापित है। लोगों की दृढ मान्यता है की रानी सतीजी ने अपने पति के हत्यारे को समाप्त कर अपना बदला लिया जो की स्त्री शक्ति का प्रतीक है इसलिए सती को दुर्गा माता का अवतार भी कहा जाता है।
सुंदर भजन में मां जगदंबा के प्रति गहरी श्रद्धा और उनके स्वागत की उत्कट अभिलाषा का उद्गार झलकता है। यह भाव उस भक्त के हृदय की पुकार है, जो मां को अपने आंगन में पाकर धन्य होना चाहता है, जैसे प्यासी धरती वर्षा की बूंदों को आतुरता से बुलाती है। मां जगदंबा, सती दादी के रूप में, भक्त के लिए वह शक्ति हैं, जो जीवन को आलोकित करती हैं।
भक्त मां का मनुहार करता है, बार-बार उन्हें बुलाता है, जैसे कोई प्रिय अतिथि को आदर से आमंत्रित करता है। गंगाजल की झारी और चांदी की चौकी का प्रबंध मां के चरण पखारने के लिए है, जो भक्ति की वह शुद्धता दर्शाता है, जो हर कार्य को पवित्र बना देती है। यह स्वागत केवल बाहरी नहीं, बल्कि मन की गहराइयों से निकला वह समर्पण है, जो मां के चरणों में सब कुछ अर्पित कर देता है।
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Author - Saroj Jangir
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