वीरभद्र चालीसा महत्त्व और महिमा

वीरभद्र चालीसा महत्त्व और महिमा

श्री वीरभद्र का वर्णन पौराणिक कथाओं से प्राप्त होता है। वे श्री शिव के सबसे बहादुर और शक्तिशाली गणों में से एक हैं। वीरभद्र की उत्पत्ति दक्ष प्रजापति के यज्ञ में हुई थी। जब सती ने दक्ष के यज्ञ में अपने अपमान को देखकर आत्महत्या कर ली, तो शिव बहुत क्रोधित हो गए। उन्होंने अपनी जटा से एक भयंकर गण उत्पन्न किया, जिसका नाम वीरभद्र रखा। वीरभद्र ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया।

वीरभद्र को शिव का अवतार भी माना जाता है। वे शिव के क्रोध और शक्ति के प्रतीक हैं। देवसंहिता में वीरभद्र को जाटों के पूर्वज के रूप में बताया गया है। देवसंहिता के अनुसार, शिव ने वीरभद्र को जाटों के रूप में प्रकट किया ताकि वे धर्म की रक्षा कर सकें और अधर्म का नाश कर सकें। वीरभद्र की पूजा भारत के कई हिस्सों में की जाती है। उन्हें अक्सर युद्ध के देवता के रूप में पूजा जाता है।

वन्दोच वीरभद्र शरणों शीश नवाओ भ्रात।
ऊठकर ब्रह्ममुहुर्त शुभ कर लो प्रभात॥
ज्ञानहीन तनु जान के भजहौंह शिव कुमार।
ज्ञान ध्यातन देही मोही देहु भक्तिु सुकुमार॥

जयजयशिवनन्दानजयजगवन्दमन। जय-जय शिव पार्वतीनन्दजन॥
जय पार्वती प्राण दुलारे। जय-जय भक्त नके दु:ख टारे॥
कमल सदृश्यव नयन विशाला। स्वर्ण मुकुट रूद्राक्षमाला॥
ताम्र तन सुन्दार मुख सोहे। सुरनरमुनि मनछविलय मोहे॥
मस्तरकतिलक वसन सुनवाले। आओ वीरभद्र कफली वाले॥
करिभक्तनन सँग हास विलासा। पूरन करि सबकी अभिलासा॥
लखिशक्ति की महिमा भारी। ऐसे वीरभद्र हितकारी॥
ज्ञान ध्यादन से दर्शन दीजै। बोलो शिव वीरभद्र की जै॥
नाथ अनाथो के वीरभद्रा। डूबत भँवर बचावत शुद्रा॥
वीरभद्र मम कुमति निवारो। क्षमहु करो अपराध हमारो ॥
वीरभद्र जब नाम कहावै। आठों सिद्घि दौडती आवै॥
जय वीरभद्र तप बल सागर। जय गणनाथत्रिलोग उजागर॥
शिवदूत महावीर समाना। हनुमत समबल बुद्घिधामा॥
दक्षप्रजापति यज्ञ की ठानी। सदाशिव बिनसफलयज्ञ जानी॥
सति निवेदन शिवआज्ञा दीन्ही। यज्ञ सभासति प्रस्थाआनकीन्हीा ॥
सबहु देवन भाग यज्ञ राखा। सदाशिव करि दियो अनदेखा॥

शिव के भागयज्ञ नहींराख्यौश। तत्क्ष ण सती सशरीर त्यागो॥
शिव का क्रोध च रम उपजायो। जटा केश धरा पर मार्‌यो॥
तत्क्ष ण टँकार उठी दिशाएँ वीरभद्र रूप रौद्र दिखाएँ॥
कृष्ण् वर्ण निज तन फैलाए। सदाशिव सँग त्रिलोक हर्षाए॥
व्योमसमान निजरूपधरलिन्हो। शत्रुपक्ष परदऊचरण धर लिन्हो॥॥
रणक्षेत्र में ध्वँलस मचायो। आज्ञा शिव की पाने आयो॥
सिंह समान गर्जना भारी। त्रिमस्त क सहस्र भुजधारी॥
महाकाली प्रकट हु आई। भ्राता वीरभद्र की नाई॥

आज्ञा ले सदाशिव की चलहुँ ओर ।
वीरभद्र अरू कालिका टूट पडे चहुओर॥



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वीरभद्र चालीसा भगवान शिव के प्रमुख गण और अवतार, वीरभद्र की स्तुति में रचित एक भक्ति भजन है, जिसे "कृष्णशंकर सोनाने" ने रचित किया है। यह चालीसा साधक के मन को शांति प्रदान करती है, बुराइयों से दूर रखती है, और वीरभद्र की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि लाती है। नियमित पाठ से साधक को भय, संकट, और कुमति से मुक्ति मिलती है, साथ ही आठों सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। यह भजन विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो युद्ध, शक्ति, और धर्म की रक्षा से जुड़े कार्यों में संलग्न हैं।
 
वीरभद्र, शिव के क्रोध और शक्ति के प्रतीक, त्रिलोक में उजागर हैं। उनके रौद्र रूप, सहस्र भुजाएँ, और सिंह-सी गर्जना साधक के शत्रुओं का नाश करती हैं। चालीसा का पाठ ब्रह्ममुहूर्त में करने से ज्ञान, ध्यान, और भक्ति बढ़ती है, जिससे साधक का जीवन पवित्र और उद्देश्यपूर्ण बनता है। 

वीरभद्र की उत्पत्ति का वर्णन स्कंद, शिव, लिंग, और देवी पुराण सहित विभिन्न ग्रंथों में मिलता है। दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवताओं, ऋषियों, और मुनियों को आमंत्रित किया, परंतु शिव और सती को जानबूझकर नजरअंदाज किया। सती ने शिव की अनुमति से यज्ञ में भाग लिया, लेकिन वहाँ शिव का भाग न निकाले जाने और अपमानित होने पर क्रोधित होकर यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया। यह समाचार सुनकर शिव का क्रोध चरम पर पहुँचा। उन्होंने अपनी जटा उखाड़कर धरती पर पटकी, जिससे वीरभद्र और महाकाली प्रकट हुए।
 
शिव की आज्ञा से वीरभद्र और महाकाली यज्ञ स्थल पर पहुँचे। वीरभद्र ने रौद्र रूप धारण किया—कृष्ण वर्ण, त्रिमस्तक, सहस्र भुजधारी, सिंह-सी गर्जना के साथ। उन्होंने यज्ञ का विध्वंस किया, दक्ष की सेना को नष्ट किया, और दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया। यज्ञ स्थल रक्त से लाल हो गया। बाद में, ब्रह्मा और विष्णु की प्रार्थना पर शिव ने दक्ष को बकरे का सिर जोड़कर जीवनदान दिया, और यज्ञ पूर्ण हुआ।
 
वीरभद्र की महिमा और दक्ष यज्ञ की पौराणिक कथा को उजागर करता है। यह साधक को शिव के रौद्र और रक्षक स्वरूप से जोड़ता है, संकटों से मुक्ति और आध्यात्मिक बल प्रदान करता है। वीरभद्र, शिव के गण और अवतार के रूप में, धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश का प्रतीक हैं। उनकी पूजा और चालीसा का पाठ साधक को शक्ति, शांति, और सिद्धि से समृद्ध करता है, जीवन को भक्ति और विश्वास के रंग से रंगता है।
 
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