जन गण मन अधिनायक जय हे महत्त्व

जन गण मन अधिनायक जय हे जानिये महत्त्व

"जन गण मन" भारत का राष्ट्रगान है, जिसे गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर (टैगोर) ने मूलतः बांग्ला भाषा में 1911 में रचा था। इस गीत को 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा द्वारा राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया।
यह गीत भारत की विविधता में एकता, सांस्कृतिक समृद्धि और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। इसके बोल देश के विभिन्न क्षेत्रों, नदियों, पर्वतों और सांस्कृतिक धरोहरों का उल्लेख करते हुए राष्ट्र की एकता और अखंडता को दर्शाते हैं। गीत में भारत के विभिन्न प्रांतों और प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए, देशवासियों के मन में देशभक्ति की भावना जागृत की जाती है। इस प्रकार, "जन गण मन" न केवल एक गीत है, बल्कि यह भारत की आत्मा और उसकी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
 
जन-गण-मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता।
पंजाब-सिंधु-गुजरात-मराठा
द्राविड़-उत्कल-बंग।
विंध्य-हिमाचल-यमुना-गंगा
उच्छल जलधि तरंग।
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशीष मांगे
गाहे तव जय गाथा।
जन-गण-मंगलदायक जय हे
भारत भाग्य विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे।


 
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यह भाव उस सत्य को प्रकट करता है कि भारत का भाग्य विधाता केवल एक शक्ति नहीं, बल्कि उसकी विविधता में बसी एकता और आशीर्वाद की साझी चेतना है।

पंजाब, सिंधु, गुजरात, मराठा, द्राविड़, उत्कल और बंग जैसे विविध क्षेत्रों का उल्लेख भारत की सांस्कृतिक और भौगोलिक समृद्धि को रेखांकित करता है। यह उद्गार मन को यह सिखाता है कि भारत की ताकत उसकी विभिन्नता में एकता है, जैसे नदियाँ भिन्न-भिन्न मार्गों से सागर में मिलती हैं। विंध्य, हिमाचल, यमुना और गंगा का उल्लेख प्रकृति की उस शक्ति को दर्शाता है, जो भारत को जीवन और प्रेरणा देती है।

शुभ नाम में जागरण और आशीष की माँग भक्त के मन में देश के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता की भावना को जागृत करती है। यह भाव उस विश्वास को प्रकट करता है कि भारत का हर नागरिक अपने देश की जयगाथा गाकर उसकी उन्नति में योगदान देता है। जैसे कोई विद्यार्थी अपने गुरु के प्रति निष्ठा से प्रेरित होता है, वैसे ही यह भजन हर भारतीय को देश की सेवा के लिए प्रेरित करता है।

यह उद्गार उस शाश्वत सत्य को प्रदर्शित करता है कि भारत का भाग्य उसकी जनता के एकजुट प्रयासों और मंगलमय आशीर्वाद से संनादित है। यह भाव हर उस व्यक्ति को प्रेरित करता है, जो भारत के गौरव और एकता को अपने हृदय में संजोना चाहता है।
জনগণমন-অধিনায়ক জয় হে ভারতভাগ্যবিধাতা!
পাঞ্জাব সিন্ধু গুজরাট মারাঠা দ্রাবিড় উৎকল বঙ্গ
বিন্ধ্য হিমাচল যমুনা গঙ্গা উচ্ছলজলধিতরঙ্গ
তব শুভ নামে জাগে, তব শুভ আশিষ মাগে,
গাহে তব জয়গাথা।
জনগণমঙ্গলদায়ক জয় হে ভারতভাগ্যবিধাতা!
জয় হে, জয় হে, জয় হে, জয় জয় জয় জয় হে॥
मूल कविता के पांचों पद
जनगणमन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलजलधितरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जयगाथा।
जनगणमंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

अहरह तव आह्वान प्रचारित, शुनि तव उदार बाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन पारसिक मुसलमान खृष्टानी
पूरब पश्चिम आसे तव सिंहासन-पाशे
प्रेमहार हय गाँथा।
जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

पतन-अभ्युदय-वन्धुर पन्था, युग युग धावित यात्री।
हे चिरसारथि, तव रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि।
दारुण विप्लव-माझे तव शंखध्वनि बाजे
संकटदुःखत्राता।
जनगणपथपरिचायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

घोरतिमिरघन निविड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे।
दुःस्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके
स्नेहमयी तुमि माता।
जनगणदुःखत्रायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्व-उदयगिरिभाले –
गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवनरस ढाले।
तव करुणारुणरागे निद्रित भारत जागे
तव चरणे नत माथा।
जय जय जय हे जय राजेश्वर भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
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