कट प्रीता नाल चरखा सिमरन दा

कट प्रीता नाल चरखा सिमरन दा

कट प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,
बड़े ही भागा नाल मिलिया हीरे मोतियां नाल जड़ियाँ,
चढ़ी जवानी सिर ते तेरे न तंद सिमरन दा तू फड़ियां,
सूती पई तू गहरी नींदे सिर ते सूरज चड्या चरखा सिमरन दा,
कट प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,

पूछ सहेलियां तेरियां ने ता कत कत ढेर लगाया,
कत कत सिमरन दे तंद न ध्यान दी अती बनाया,
सूती दी तू सूती रहियो सूती न दिन चढ़ आया चरखा सिमरन दा,
कट प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,

वडी दिति सतगुरु ताहि नाम दा चीर बनाया,
रह गई तू सूती दी सूती नहीं लेके कुछ पाया,
की मुख लेके जावे गी जद लारा मौत दा आया,
चरखा सिमरन दा...

तड़के सार तू उठ के भेहणे सिमरन दी माला बना ले,
गुरा दा नाम तू लेके अपने दुखड़े सारे मुका ले,
अंत वेले एही कम आना बाकी सब लूट जाना,
चरखा सिमरन दा....


सुंदर भजन में सिमरन के चरखे को प्रीत के साथ कातने की प्रेरणा है, जो जीवन को सार्थक बनाने का रास्ता दिखाता है। यह भाव ऐसा है, जैसे कोई सुबह की पहली किरण मन को जगाए और कहे कि समय बीत रहा है, अब जागो। सिमरन का चरखा अनमोल है, जैसे हीरे-मोतियों से जड़ा खजाना, जो भाग्यशालियों को ही मिलता है। जवानी के जोश में यह भूलना आसान है कि यह समय क्षणभंगुर है, लेकिन सिमरन की तंद पकड़ने से ही जीवन सच्ची दिशा पाता है।

सहेलियों का पूछना और सिमरन के ढेर लगाने का जिक्र मन को झकझोरता है। यह ऐसा है, जैसे कोई सच्चा मित्र आकर याद दिलाए कि दुनिया की भागदौड़ में असली कमाई सिमरन की है। गहरी नींद में सोया मन तब तक चैन में रहता है, जब तक सूरज सिर पर न चढ़ जाए। यह भजन पुकारता है कि अब ध्यान लगाओ, क्योंकि सिमरन ही वह अटल धागा है, जो मन को बांधे रखता है। जैसे कोई विद्यार्थी समय पर मेहनत कर परीक्षा में सफल होता है, वैसे ही सिमरन की मेहनत मन को शांति देती है।

सतगुरु की दी हुई नाम की चादर अनमोल है, लेकिन उसे ओढ़ने के लिए जागना जरूरी है। यह भाव बताता है कि गुरु का दिया ज्ञान तभी काम आता है, जब मन उसे ग्रहण करे। मौत का लारा जब आएगा, तो सिमरन ही साथ देगा। यह ऐसा है, जैसे कोई यात्री लंबी यात्रा के लिए केवल जरूरी सामान साथ ले जाए। दुनिया का बाकी सब कुछ पीछे छूट जाता है, लेकिन सिमरन का धागा हमेशा साथ रहता है।

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