होके हवाले श्याम रिझाले भजन
होके हवाले श्याम रिझाले
होके हवाले श्याम रिझाले
श्याम की किरपा पायेगा,
बैठा मौज उड़ाएगा,
जय जय श्याम,
जय जय श्याम,
जय श्री श्याम।
छोड़ दे सारे काम तुम्हारे,
श्याम धणी की मर्जी पे,
लीले वाला झट कर देगा,
लेगा ध्यान तुम्हारी अर्जी पे,
बिना डोर के पतंग तुम्हारी,
मेरा श्याम उड़ाएगा,
बैठा मौज उड़ाएगा।
किसी सेठ की करे नौकरी,
तुझे तरक्की क्या देगा,
चाकर बन जा सेठ श्याम का,
दामन तेरा भर देगा,
चपड़ासी से सीधे प्यारे,
अफ़सर तू बन जायेगा,
बैठा मौज उड़ाएगा।
इक पते की बात बताऊँ,
इसको जो कोई ध्याता है,
श्याम धणी की कृपा से,
इसका होके रह जाता है,
जीवन भर फिर मेरा बाबा,
उसका साथ निभाएगा,
बैठा मौज उड़ाएगा।
देख जरा तू करके भरोसा,
हारे के रखवाले का,
हर्ष सदा ही साथ निभाये,
ये किस्मत के मारे का,
भक्तो के विश्वाश को बाबा,
तोड़ कभी न पायेगा,
बैठा मौज उड़ाएगा।
होके हवाले श्याम रिझाले
श्याम की किरपा पायेगा,
बैठा मौज उड़ाएगा,
जय जय श्याम,
जय जय श्याम,
जय श्री श्याम।
श्याम की किरपा पायेगा,
बैठा मौज उड़ाएगा,
जय जय श्याम,
जय जय श्याम,
जय श्री श्याम।
छोड़ दे सारे काम तुम्हारे,
श्याम धणी की मर्जी पे,
लीले वाला झट कर देगा,
लेगा ध्यान तुम्हारी अर्जी पे,
बिना डोर के पतंग तुम्हारी,
मेरा श्याम उड़ाएगा,
बैठा मौज उड़ाएगा।
किसी सेठ की करे नौकरी,
तुझे तरक्की क्या देगा,
चाकर बन जा सेठ श्याम का,
दामन तेरा भर देगा,
चपड़ासी से सीधे प्यारे,
अफ़सर तू बन जायेगा,
बैठा मौज उड़ाएगा।
इक पते की बात बताऊँ,
इसको जो कोई ध्याता है,
श्याम धणी की कृपा से,
इसका होके रह जाता है,
जीवन भर फिर मेरा बाबा,
उसका साथ निभाएगा,
बैठा मौज उड़ाएगा।
देख जरा तू करके भरोसा,
हारे के रखवाले का,
हर्ष सदा ही साथ निभाये,
ये किस्मत के मारे का,
भक्तो के विश्वाश को बाबा,
तोड़ कभी न पायेगा,
बैठा मौज उड़ाएगा।
होके हवाले श्याम रिझाले
श्याम की किरपा पायेगा,
बैठा मौज उड़ाएगा,
जय जय श्याम,
जय जय श्याम,
जय श्री श्याम।
होके हवाले श्याम रिझाले Hoke Havale Shyam Rijhale
सुन्दर भजन में श्रीश्यामजी की असीम कृपा और उनके प्रति भक्तों की अटूट श्रद्धा का भाव प्रकाशित किया गया है। जब भक्त पूरी तरह से स्वयं को श्रीश्यामजी के हवाले कर देता है, तब उसे उनकी कृपा सहज रूप से प्राप्त होती है, और जीवन के समस्त कष्ट समाप्त हो जाते हैं। यह भजन समर्पण और विश्वास के उस दिव्य भाव को प्रकट करता है जिसमें श्यामजी का प्रेम और करुणा अनंत रूप से बहती है।
श्यामजी की शरण में आने से भक्त की समस्त चिंता समाप्त हो जाती है। उनकी कृपा से जीवन में मंगल का संचार होता है, और भक्त बिना किसी संशय के आनंद की अनुभूति करता है। जब कोई प्रेम और श्रद्धा से श्रीश्यामजी को पुकारता है, तब वे उसकी पुकार को सुनकर समस्त संकटों को हर लेते हैं और उसे सुख-शांति का वरदान देते हैं।
भजन का भाव यह दर्शाता है कि श्रीश्यामजी केवल संकटों से मुक्त करने वाले देव नहीं, बल्कि वे प्रेम, समर्पण और भक्तों के जीवन में स्थिरता का प्रतीक भी हैं। जब भक्त सच्चे मन से उनकी उपासना करता है, तब उसकी आत्मा परम सुख और आनंद से भर जाती है। उनका आशीर्वाद जीवन को एक नई दिशा प्रदान करता है, जिससे भक्त ईश्वर की कृपा से निरंतर आगे बढ़ता है।
श्रीश्यामजी की उपासना से आत्मा को सच्चा संतोष प्राप्त होता है। जब भक्त पूर्ण श्रद्धा से उनके श्रीचरणों में समर्पित होता है, तब वह ईश्वरीय आनंद का अनुभव करता है। यही इस भजन का दिव्य संदेश है—श्रद्धा, प्रेम और भक्ति से श्रीश्यामजी की कृपा को प्राप्त करना और उनके नाम के सुमिरन से आत्मा को अनंत शांति और आनंद की अनुभूति कराना। यही भक्ति का सजीव स्वरूप है, जिसमें भक्त अपने तन-मन को पूर्ण रूप से श्रीश्यामजी को अर्पित करता है।
श्यामजी की शरण में आने से भक्त की समस्त चिंता समाप्त हो जाती है। उनकी कृपा से जीवन में मंगल का संचार होता है, और भक्त बिना किसी संशय के आनंद की अनुभूति करता है। जब कोई प्रेम और श्रद्धा से श्रीश्यामजी को पुकारता है, तब वे उसकी पुकार को सुनकर समस्त संकटों को हर लेते हैं और उसे सुख-शांति का वरदान देते हैं।
भजन का भाव यह दर्शाता है कि श्रीश्यामजी केवल संकटों से मुक्त करने वाले देव नहीं, बल्कि वे प्रेम, समर्पण और भक्तों के जीवन में स्थिरता का प्रतीक भी हैं। जब भक्त सच्चे मन से उनकी उपासना करता है, तब उसकी आत्मा परम सुख और आनंद से भर जाती है। उनका आशीर्वाद जीवन को एक नई दिशा प्रदान करता है, जिससे भक्त ईश्वर की कृपा से निरंतर आगे बढ़ता है।
श्रीश्यामजी की उपासना से आत्मा को सच्चा संतोष प्राप्त होता है। जब भक्त पूर्ण श्रद्धा से उनके श्रीचरणों में समर्पित होता है, तब वह ईश्वरीय आनंद का अनुभव करता है। यही इस भजन का दिव्य संदेश है—श्रद्धा, प्रेम और भक्ति से श्रीश्यामजी की कृपा को प्राप्त करना और उनके नाम के सुमिरन से आत्मा को अनंत शांति और आनंद की अनुभूति कराना। यही भक्ति का सजीव स्वरूप है, जिसमें भक्त अपने तन-मन को पूर्ण रूप से श्रीश्यामजी को अर्पित करता है।
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Author - Saroj Jangir
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