राम सनेही साबरियो भजन

राम सनेही साबरियो भजन

राम सनेही साबरियो, म्हांरी नगरी में उतर्यो आय।।टेक।।
प्राण जाय पणि प्रीत न छांडूं रहीं चरण लपटाय।
सपत दीप की दे परकरमा, हरि हरी में रहौ समाय।
तीन लोक झोली में डारै, धरती ही कियो निपाय।
मीरां के प्रभु हरि अबिनासी, रहौ चरण लपटाय।।
(पणि=परन्तु,तथापि, सपत=सप्त, परकरमा= परिक्रमा) 


सुन्दर भजन में श्रीरामजी के प्रति अनन्य भक्ति और आत्मसमर्पण का उदगार है। रामसनेही भाव वह अवस्था है, जिसमें भक्त अपने आराध्य के प्रति संपूर्ण चेतना समर्पित कर देता है। श्रीरामजी के पावन नगर में उतरकर भक्त का मन श्रद्धा और प्रेम से भर जाता है।

यह प्रेम सांसारिक सीमाओं से परे है—जिसमें प्राण भी चले जाएँ, परंतु प्रेम कभी नहीं टूटता। उनके चरणों में लिपटे रहने की यह भावना भक्त के दृढ़ विश्वास और अटल निष्ठा को दर्शाती है। सप्तद्वीप की परिक्रमा करते हुए साधक अपने आराध्य में विलीन हो जाता है, जिससे अंतर्मन में भक्ति का सच्चा प्रकाश प्रकट होता है।

तीनों लोकों की समस्त संपत्ति भक्त के लिए तुच्छ होती है, क्योंकि उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण श्रीरामजी की कृपा है। जब आत्मा उनकी अनुकम्पा में स्थित हो जाती है, तब सांसारिक बंधनों का कोई प्रभाव नहीं रहता। यही वह दिव्यता है, जिसमें भक्त का मन सच्चे प्रेम और भक्ति में रम जाता है।

श्रीरामजी की आराधना से आत्मा को शाश्वत आनंद की प्राप्ति होती है। उनके चरणों में निवेदन से जीवन में मंगलमय परिवर्तन आता है, और भक्त उनकी कृपा में पूर्णतः स्थापित हो जाता है। भजन में इस आत्मसमर्पण की भावना सहज रूप से प्रवाहित होती है, जिससे हर भक्त श्रीरामजी की दिव्यता में स्थित हो जाता है।
 
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