राम सनेही साबरियो लिरिक्स
राम सनेही साबरियो, म्हांरी नगरी में उतर्यो आय।।टेक।।
प्राण जाय पणि प्रीत न छांडूं रहीं चरण लपटाय।
सपत दीप की दे परकरमा, हरि हरी में रहौ समाय।
तीन लोक झोली में डारै, धरती ही कियो निपाय।
मीरां के प्रभु हरि अबिनासी, रहौ चरण लपटाय।।
(पणि=परन्तु,तथापि, सपत=सप्त, परकरमा= परिक्रमा)
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