इतनी सी क्रपा मुझ पर कर दो भजन

इतनी सी क्रपा मुझ पर कर दो भजन

इतनी सी कृपा मुझ पर कर दो,
अपने चरणों की दो मुझे गुलामी,

मेरे इस जीवन के आप सहारे हैं,
सारी दुनियाँ झूंठी है प्रबु आप हमारे हैं,
तुम ही तो परिवार हमारे,
हारे के बाबा आप सहारे जाऊ बलहारी,
इतनी सी कृपा मुझ पर कर दो,
अपने चरणों की दो मुझे गुलामी,

मेरी क्या औकात प्रभु बस इतनी अर्जी है,
अपना लो या ठुकरा दो यह आपकी मर्जी है,
जब जीवन से करूँ किनारा,
नजरो मे यही नजर सूरत तुम्हारी,
इतनी सी कृपा मुझ पर कर दो,
अपने चरणों की दो मुझे गुलामी,

मेरे इस परिवार के पालनहार तुम्ही प्यारे,
हाथ तेरा जिसके सिर पर वो कैसे हारे,
कभी ना भूलू नाम तुम्हारा,
मोनू कहे जगत ये सारा शरण तुम्हारी,
इतनी सी कृपा मुझ पर कर दो,
अपने चरणों की दो मुझे गुलामी,
खाटू नरेश अन्तर्यामी
अपने चरणों की दो गुलामी,


सुंदर भजन में पूर्ण समर्पण और प्रभु की असीम कृपा को पाने की आकांक्षा प्रदर्शित की गई है। यह अनुभूति बताती है कि जब भक्त अपने अहंकार को त्यागकर श्रीकृष्णजी के चरणों में समर्पित हो जाता है, तब वह सांसारिक मोह से मुक्त होकर केवल उनकी कृपा पर निर्भर रहने लगता है।

श्रद्धा की यह पराकाष्ठा दर्शाती है कि ईश्वर ही जीवन के सच्चे आधार हैं—संसार की नश्वरता के बीच केवल उनकी शरण ही सच्ची शांति और सुरक्षा प्रदान कर सकती है। जब भक्त यह स्वीकार करता है कि उसके जीवन का एकमात्र सहारा प्रभु हैं, तब वह अपने समस्त विचारों, भावनाओं और अस्तित्व को उनके चरणों में अर्पित कर देता है।

ईश्वर की कृपा केवल भौतिक इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और चेतना को जागृत करने के लिए होती है। जब भक्त सच्चे मन से पुकारता है, तब उसे सांसारिक बंधनों से मुक्त करने का मार्ग स्वतः प्राप्त हो जाता है।

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