मेरा जोगी यार गरीबा दा

मेरा जोगी यार गरीबा दा

की लेना वडया बन के,
मेरा जोगी यार गरीबा दा,
मेरा बाबा नाल गरीबा दे,
चलो रोट चढ़ाइये ओहदे दर ते,
मेरा योगी यार गरीबा दा,

छोटा बन के देख नज़ारा,
दर्शन नाथ दा हो प्यारा,
प्यारिया देख ला सिमरन करके,
मेरा जोगी यार गरीबा दा,

विच गरीबी योगी मिलदा,
साफ़ हॉवे ये पर्दा दिल दा,
बह जा चरण विच सिर धरके,
मेरा जोगी यार गरीबा दा,

बाबा जी न भूल न जावी 
गुफा दे जाके दर्शन पावी,
सोनी फेर साहा दे मनके,
मेरा जोगी यार गरीबा दा,

सुंदर भजन में सच्चे संत और उनकी सहजता की अनुभूति प्रदर्शित की गई है। यह भाव बताता है कि ईश्वर का वास्तविक स्वरूप वैभव या बाहरी पहचान में नहीं, बल्कि विनम्रता और त्याग में मिलता है। जो व्यक्ति छोटे बनकर संसार को देखता है, वह प्रभु के सच्चे दर्शन का अनुभव करता है।

भक्ति का यह मार्ग सांसारिक आडंबरों से परे है—यह न धन की चाह रखता है, न प्रतिष्ठा की, बल्कि केवल सच्ची श्रद्धा और प्रेम से ईश्वर तक पहुँचने की अनुभूति को स्वीकार करता है। यह अनुभूति बताती है कि जब दिल का पर्दा साफ़ होता है, तब ईश्वर स्वयं भक्त की आत्मा में प्रकट होते हैं।

श्रद्धा और समर्पण की यह अवस्था सिखाती है कि ईश्वर के सान्निध्य को पाने के लिए कोई बाहरी साधन आवश्यक नहीं होता, बल्कि एक सच्चा हृदय ही सबसे बड़ा माध्यम बन जाता है। जब व्यक्ति अपने अहंकार को त्यागकर चरणों में सिर झुका देता है, तब वह प्रभु के वास्तविक प्रेम को अनुभव कर सकता है।

Next Post Previous Post