मीर तक़ी मीर इश्क़ में जी को सब्र-ओ-ताब कहाँ Meer Taki Meer Gajal Ishk Me Ji Ko Sabra Kahan

मीर तक़ी मीर इश्क़ में जी को सब्र-ओ-ताब कहाँ Lyrics Hindi Poet Meer Taki Meer Gajal Ishk Me Ji Ko Sabra Kahan

मीर तक़ी मीर
इश्क़ में जी को सब्र-ओ-ताब कहाँ
इश्क़ में जी को सब्र-ओ-ताब कहाँ
उस से आँखें लगीं तो ख़्वाब कहाँ

बेकली दिल ही की तमाशा है
बर्क़ में ऐसे इज़्तेराब कहाँ

हस्ती अपनी है बीच में पर्दा
हम न होवें तो फिर हिजाब कहाँ

गिरिया-ए-शब से सुर्ख़ हैं आँखें
मुझ बला नोश को शराब कहाँ

इश्क़ है आशिक़ों को जलने को
ये जहन्नुम में है अज़ाब कहाँ

महव हैं इस किताबी चेहरे के
आशिक़ों को सर-ए-किताब कहाँ

इश्क़ का घर है 'मीर' से आबाद
ऐसे फिर ख़ानमाँख़राब कहाँ

(बर्क़=आसमानी बिजली, इज़्तेराब=तड़प, हिजाब=पर्दा, ख़ानमाँख़राब=बरबाद)

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इस शेर में मीर तकी मीर प्रेम के रस में डूबे हुए व्यक्ति की स्थिति का वर्णन करते हैं। वह कहते हैं कि प्रेम में मनुष्य को धैर्य और संयम कहाँ रह जाता है। जब वह अपने प्रेमी या प्रेमिका को देखता है, तो उसके सभी सपने दूर हो जाते हैं। वह बेचैन हो जाता है और उसे तड़प होती है। उसकी अपनी हस्ती उसके बीच में एक पर्दा बन जाती है। वह अपने प्रेमी या प्रेमिका के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना नहीं कर सकता। वह रातभर जागता रहता है और अपने प्रेमी या प्रेमिका के बारे में सोचता रहता है। वह शराब पीकर अपनी पीड़ा को कम करने की कोशिश करता है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिलती। वह कहता है कि प्रेम ही आशिक़ों को जलने के लिए है। जहन्नुम में जो अज़ाब होता है, वह उससे कम है। वह कहता है कि प्रेमियों को किताबों से क्या मतलब? वे तो प्रेम में डूबे हुए हैं। वह कहता है कि इश्क़ का घर 'मीर' से आबाद है। ऐसे फिर ख़ानमाँख़राब कहाँ? मीर का मतलब है कि इश्क़ में डूबे हुए व्यक्ति को दुनिया की कोई चिंता नहीं रहती। वह अपने प्रेमी या प्रेमिका के लिए सब कुछ त्याग सकता है।
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