परीक्षा कब तक लोगे नाथ

परीक्षा कब तक लोगे नाथ

अँधेरों में कहो कौन थामेगा मेरा हाथ,
बहुत हो चुका है, और परीक्षा कब तक लोगे, नाथ।।

चलकर भी जब मैं काँटों पर ही चलता हूँ,
हर पल, हर दम अंगारों में जलना पड़ता है।
रोज़ मुसीबत नया रूप धरकर आ जाती है,
रोज़ नए सांचे में मुझको ढलना पड़ता है।
बोलो, कब तक ऐसे ही सहने होंगे आघात,
बहुत हो चुका है, और परीक्षा कब तक लोगे, नाथ।।

सच के पथ पर चला, सदा तेरा ध्यान लगाया,
पर लगता है जैसे तूने मुझको कहीं भुलाया।
तेरी शरण छोड़कर, बाबा, बताओ कहाँ जाऊँ,
दुख का बादल मेरे सिर पर क्यों इतना गहराया।
कब तक और भटकना होगा मुझको दिन और रात,
बहुत हो चुका है, और परीक्षा कब तक लोगे, नाथ।।

सहते-सहते सँकटक अब टूट चुकी है आस,
करुणा कर दो, करुणासागर, हार चुका है दास।
भक्त अगर मुश्किल में हो तो आते हैं भगवान,
तुम न सुनो तो बताओ, कौन सुने इस अरदास?
तुमसे कहाँ छुपे हैं, बाबा, मेरे ये हालात,
बहुत हो चुका है, और परीक्षा कब तक लोगे, नाथ।।



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Saroj Jangir Author Admin - Saroj Jangir

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