श्री वर्द्धमान जी की आरती
श्री वर्द्धमान जी की आरती
करौं आरती वर्द्धमानकी | पावापुर निरवान थान की टेक
राग – बिना सब जगजन तारे |
द्वेष बिना सब कर्म विदारे |
शील-धुरंधर शिव-तिय भोगी |
मनवच-कायन कहिये योगी |
करौं आरती वर्द्धमानकी
रत्नत्रय निधि परिग्रह-हारी |
ज्ञानसुधा भोजनव्रतधारी |
करौं आरती वर्द्धमानकी
लोक अलोक व्यापै निजमांहीं |
सुखमय इंद्रिय सुखदुख नाहीं |
करौं आरती वर्द्धमानकी
पंचकल्याणकपूज्य विरागी |
विमल दिगंबर अबंर-त्यागी |
करौं आरती वर्द्धमानकी
गुनमनि-भूषन भूषित स्वामी |
जगत उदास जगंतर स्वामी |
करौं आरती वर्द्धमानकी
कहै कहां लौ तुम सबजानौं |
‘द्यानत’ की अभिलाषा प्रमानौ |
करौं आरती वर्द्धमानकी
राग – बिना सब जगजन तारे |
द्वेष बिना सब कर्म विदारे |
शील-धुरंधर शिव-तिय भोगी |
मनवच-कायन कहिये योगी |
करौं आरती वर्द्धमानकी
रत्नत्रय निधि परिग्रह-हारी |
ज्ञानसुधा भोजनव्रतधारी |
करौं आरती वर्द्धमानकी
लोक अलोक व्यापै निजमांहीं |
सुखमय इंद्रिय सुखदुख नाहीं |
करौं आरती वर्द्धमानकी
पंचकल्याणकपूज्य विरागी |
विमल दिगंबर अबंर-त्यागी |
करौं आरती वर्द्धमानकी
गुनमनि-भूषन भूषित स्वामी |
जगत उदास जगंतर स्वामी |
करौं आरती वर्द्धमानकी
कहै कहां लौ तुम सबजानौं |
‘द्यानत’ की अभिलाषा प्रमानौ |
करौं आरती वर्द्धमानकी
श्री वर्द्धमान जी की आरती में उनके चरित्र और तपस्वी जीवन की महत्ता को उजागर किया गया है। वे ऐसे योगी हैं जिन्होंने मन, वचन और काया की एकाग्रता से ब्रह्मचर्य और शील का पालन किया। उनकी साधना में द्वेष का स्थान नहीं, केवल प्रेम और करुणा का वास है, जिससे सभी कर्मों का बंधन टूट जाता है। ज्ञान की अमृतधारा से अपने मन और शरीर को पोषित करते हुए उन्होंने सांसारिक सुख-दुख से ऊपर उठकर आत्मा की शुद्धि प्राप्त की।
उनका निर्वाण स्थल पावापुर, जहां उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया, एक पवित्र धाम माना जाता है। वे पंचकल्याणक पूज्य, विरागी और विमल दिगंबर हैं, जो सांसारिक बंधनों को त्यागकर परमात्मा की ओर अग्रसर हुए। उनके गुणों की माला जैसे रत्नत्रय की तरह चमकती है, और वे जगत के उदासीन स्वामी के रूप में विख्यात हैं, जो संसार के मोह-माया से मुक्त होकर सभी जीवों के लिए सुखदायक हैं।
उनकी आरती में यह भी कहा गया है कि उनकी साधना और ध्यान की अभिलाषा ही मोक्ष का प्रमाण है, जो सभी ज्ञानी और साधकों के लिए मार्गदर्शक है। वे न केवल आध्यात्मिक गुरु हैं, बल्कि कर्म और ज्ञान के आदर्श भी हैं, जिनसे जीवन की हर उलझन सुलझती है और मनुष्य को शांति मिलती है।
उनका निर्वाण स्थल पावापुर, जहां उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया, एक पवित्र धाम माना जाता है। वे पंचकल्याणक पूज्य, विरागी और विमल दिगंबर हैं, जो सांसारिक बंधनों को त्यागकर परमात्मा की ओर अग्रसर हुए। उनके गुणों की माला जैसे रत्नत्रय की तरह चमकती है, और वे जगत के उदासीन स्वामी के रूप में विख्यात हैं, जो संसार के मोह-माया से मुक्त होकर सभी जीवों के लिए सुखदायक हैं।
उनकी आरती में यह भी कहा गया है कि उनकी साधना और ध्यान की अभिलाषा ही मोक्ष का प्रमाण है, जो सभी ज्ञानी और साधकों के लिए मार्गदर्शक है। वे न केवल आध्यात्मिक गुरु हैं, बल्कि कर्म और ज्ञान के आदर्श भी हैं, जिनसे जीवन की हर उलझन सुलझती है और मनुष्य को शांति मिलती है।