तेरे बिना ओ श्याम मेरा क्या हाल हो गया

तेरे बिना ओ श्याम मेरा क्या हाल हो गया

तेरे बिना ओ श्याम मेरा क्या हाल हो गया,
आके तेरे दर पे निहाल हो गया,
तेरे बिना ओ श्याम मेरा क्या हाल हो गया,

दुःख के बदल दूर हटे जब शरण में तेरी आया,
बिन मांगे सब तुमसे पाया ऐसी है तेरी माया,
जो पहले न हुआ वो कमाल हो गया हां धमाल हो गया,
आके तेरे दर पे निहाल हो गया,

भक्ति की शक्ति क्या होती है,
मैं तो समज न पाया,
मन का दर्पण यांक के देखा तू ही नजर वाहा आया,
जब से तू मुझे मिला माला माल हो गया मैं खुश हाल हो गया,
आके तेरे दर पे निहाल हो गया...

तू ही बनाये तू ही मिटाये तू ही पार लगाये,
विजय राज तेरी लिखे वन्दना सुधीर संगाये सा गाये,
कुर्बान हो गया माला माल हो गया ओ कमाल हो गया,
आके तेरे दर पे निहाल हो गया,


यह भजन श्रीकृष्णजी के प्रति गहन श्रद्धा और उनकी शरण में आने के बाद जीवन में होने वाले दिव्य परिवर्तन को प्रदर्शित करता है। जब भक्त संसार की कठिनाइयों से घिर जाता है और उसे कोई मार्ग नहीं दिखता, तब वह प्रभु की शरण में आकर वास्तविक शांति और आनंद का अनुभव करता है।

भजन का यह भाव बताता है कि श्रीकृष्णजी की कृपा बिना किसी अपेक्षा के मिलती है—भक्त को बिन मांगे ही सब प्राप्त हो जाता है, क्योंकि ईश्वर की माया अपार है। जब हृदय में सच्चा प्रेम और समर्पण होता है, तब जीवन के दुःख स्वयं ही समाप्त हो जाते हैं, और प्रभु की करुणा से हर क्षण मंगलमय हो जाता है।

मन के दर्पण में जब व्यक्ति प्रभु को देखता है, तब उसकी समस्त चिंताओं और भटकाव का अंत हो जाता है। यह अनुभूति बताती है कि जब भक्त को श्रीकृष्णजी का सान्निध्य प्राप्त होता है, तब उसकी आत्मा माला माल हो जाती है—सच्ची भक्ति के आनंद में वह समस्त सांसारिक दुखों से मुक्त हो जाता है।
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