आदिनाथ भगवान
आरती आदिनाथ भगवान
आरती उतारूँ आदिनाथ भगवान की ।माता मरुदेवि पिता नाभिराय लाल की ।।
रोम रोम पुलकित होता देख मूरत आपकी ।
आरती हो बाबा, आरती हो,।
प्रभुजी हमसब उतारें थारी आरती ।।
तुम धर्म ुरन्धर धारी, तुम ऋषभ प्रभु अवतारी ।
तुम तीन लोक के स्वामी, तुम गुण अनंत सुखकारी ।।
इस युग के प्रथम विधाता, तुम मोक्ष मार्म के दाता ।
जो शरण तुम्हारी आता, वो भव सागर तिर जाता ।
हे… नाम हे हजारों ही गुण गान की…।।
तुम ज्ञान की ज्योति जमाए, तुम शिव मारग बतलाए ।
तुम आठो करम नशाए, तुम सिद्ध परम पद पाये ।।
मैं मंगल दीप सजाऊँ, मैं जगमग ज्योति जलाऊँ ।
मैं तुम चरणों में आऊँ, मैं भक्ति में रम जाऊँ ।।
हे झूमझूमझूम नाचूँ करुँ आरती ।
आरती उतारूँ आदिनाथ भगवान की ।
सुन्दर भजन में आदिनाथ भगवान की महिमा और उनके आदर्श जीवन की गाथा समाहित है। वे धर्म के रक्षक, ऋषभ प्रभु के रूप में त्रिलोक के स्वामी हैं, जिनके गुण अनंत हैं और जो समस्त जीवों को सुख प्रदान करते हैं। उनके चरणों में समर्पण से मनुष्य भवसागर के दुखों से पार पाकर मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है। आदिनाथ भगवान ज्ञान की ज्योति जलाते हैं और शिव मार्ग की ओर मार्गदर्शन करते हैं, जो अज्ञान और मोह के अंधकार को दूर करता है।
उनका जीवन धर्म और तपस्या का आदर्श प्रस्तुत करता है, जिसमें वे सभी कर्मों का नाश कर परम सिद्धि प्राप्त करते हैं। उनके प्रति भक्ति और श्रद्धा से मन में मंगल दीप जल उठता है, जो अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर आध्यात्मिक प्रकाश फैलाता है। आरती के दौरान उनके चरणों में समर्पित होकर मनुष्य अपने मन को शुद्ध करता है और भक्ति के रस में डूब जाता है।
आदिनाथ भगवान की छवि केवल एक तीर्थंकर के रूप में नहीं, बल्कि धर्म के प्रथम विधाता और मोक्ष के दाता के रूप में भी उभरती है। उनके जीवन से यह स्पष्ट होता है कि सच्चा सुख और शांति तब प्राप्त होती है जब मनुष्य अपने भीतर की अशांति और मोह को त्यागकर ज्ञान और धर्म के मार्ग पर चलने का संकल्प करता है। उनके चरणों में समर्पण से जीवन के सारे संकट दूर होते हैं और आत्मा को अनंत आनंद की प्राप्ति होती है।
उनका जीवन धर्म और तपस्या का आदर्श प्रस्तुत करता है, जिसमें वे सभी कर्मों का नाश कर परम सिद्धि प्राप्त करते हैं। उनके प्रति भक्ति और श्रद्धा से मन में मंगल दीप जल उठता है, जो अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर आध्यात्मिक प्रकाश फैलाता है। आरती के दौरान उनके चरणों में समर्पित होकर मनुष्य अपने मन को शुद्ध करता है और भक्ति के रस में डूब जाता है।
आदिनाथ भगवान की छवि केवल एक तीर्थंकर के रूप में नहीं, बल्कि धर्म के प्रथम विधाता और मोक्ष के दाता के रूप में भी उभरती है। उनके जीवन से यह स्पष्ट होता है कि सच्चा सुख और शांति तब प्राप्त होती है जब मनुष्य अपने भीतर की अशांति और मोह को त्यागकर ज्ञान और धर्म के मार्ग पर चलने का संकल्प करता है। उनके चरणों में समर्पण से जीवन के सारे संकट दूर होते हैं और आत्मा को अनंत आनंद की प्राप्ति होती है।