राधाजी को लागे बिंद्रावनमें नीको

राधाजी को लागे बिंद्रावनमें नीको

आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको,
राधे श्याम श्याम श्याम राधे श्याम
सीता राम राम राम राधे श्याम
घर घर तुलसी ठाकुर सेवा, दर्शन गोविंद जिको
आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको...
राधे श्याम श्याम श्याम राधे श्याम
सीता राम राम राम राधे श्याम
निर्मल नीर बहत यमुना को, भोजन दूध दही को,
आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको...

राधाजी को लागे बिंद्रावनमें नीको
राधाजी को लागे बिंद्रावनमें नीको॥टेक॥
ब्रिंदाबनमें तुलसीको वडलो जाको पानचरीको॥१॥
ब्रिंदावनमें धेनु बहोत है भोजन दूध दहींको॥२॥
ब्रिंदावनमें रास रची है दरशन कृष्णजीको॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर हरिबिना सब रंग फिको॥४॥
आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको,
घर घर तुलसी ठाकुर सेवा, दर्शन गोविंद जिको
आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको,
निर्मल नीर बहत यमुना को, भोजन दूध दही को,
आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको,
रतन सिंहासन आप विराजे, मुकुट धरे तुलसी को,
आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको,
कुंजन कुंजन फिरत राधिका, शब्द सुनत मुरली को,
आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको,
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, भजन बिना नर फीको,
आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको,


मीरा बाई का जन्म रतन सिंह के घर हुआ था। बाल्य काल में ही मीरा की माता का देहांत हो गया था और उन्हें राव दूदा ने ही पाला था। इनकी माता का नाम विरह कुमारी था। इनका विवाह राजा भोजराज के साथ हुआ था, जो उदयपुर के कुंवर थे और महाराणा सांगा के पुत्र थे। मीरा के जन्म की जानकारी विस्तार से मीरा चरित से प्राप्त होती है। बाल्य काल से ही मीरा कृष्ण की भक्ति में रमी थी, अक्सर कृष्ण की मूर्ति के आगे नाचती थी और भजन भाव में अपना ध्यान लगाती थी। श्री कृष्ण को वे अपना पति मानती थी। पति के परलोक जाने के बाद मीरा अपना सारा समय कृष्ण भक्ति में लगाती थी। पति के देहांत हो जाने के बाद उन्हें सती करने का प्रयास किया किसी तरह मीरा बाई इस से बच पायी।
Next Post Previous Post