रमईया बिन यो जिवडो दुख पावै
रमईया बिन यो जिवडो दुख पावै
मीरा भजन हिंदी रमईया बिन यो जिवडो दुख पावै।कहो कुण धीर बंधावै॥
यो संसार कुबुधि को भांडो, साध संगत नहीं भावै।
राम-नाम की निंद्या ठाणै, करम ही करम कुमावै॥
राम-नाम बिन मुकति न पावै, फिर चौरासी जावै।
साध संगत में कबहुं न जावै, मूरख जनम गुमावै॥
मीरा प्रभु गिरधर के सरणै, जीव परमपद पावै॥
(जिवड़ो=जीव, कुबुधि=दुर्बुद्धि, भांडो=बर्तन, कुमावै=कमाता है, चौरासी=चौरासी लाख योनियां)
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जीवन का असली सुख उस आत्मिक शांति में है, जो ईश्वर के शरणागत होने से प्राप्त होती है। सांसारिक मोह की चपेट में पड़ा जीव, अज्ञान और दुर्बुद्धि के कारण आत्म-कल्याण का मार्ग छोड़ देता है। इस दुनिया का स्वभाव ऐसा है कि यह निष्ठा को कमजोर कर देती है, राम-नाम को तुच्छ समझकर उसे तिरस्कृत कर देती है, और फिर जीव अपने ही कर्मों से उलझता जाता है।
संगति का प्रभाव गहरा होता है—पुण्य और सत्संग की अनुपस्थिति में चेतना मलिन हो जाती है, और बार-बार जन्म-मृत्यु के चक्र में पड़कर जीव अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ कर देता है। यह भूल घातक होती है, क्योंकि मुक्ति की राह सत्य और ईश्वर-भक्ति से होकर ही जाती है। जब तक हृदय उस अनंत शरण में नहीं समर्पित होता, तब तक शांति संभव नहीं।
ईश्वर के प्रेम में डूबा मन हर दुख-सुख से परे हो जाता है। परमात्मा की कृपा ही वह संबल है, जो चंचल मन को स्थिरता और सच्ची अनुभूति की ओर ले जाता है। जब जीव अपने अहंकार को त्यागकर प्रभु की ओर उन्मुख होता है, तब परमपद की प्राप्ति सहज हो जाती है। यही एकमात्र राह है, जो जन्मों-जन्मों के भटकाव से मुक्त कर सकती है।
जीवन का सच्चा सुख राम के नाम में ही है, बिना इसके जीव दुखों के भंवर में फंसकर भटकता रहता है। मन की शांति और धैर्य तब ही मिलता है, जब हृदय प्रभु के प्रति समर्पित हो। यह संसार माया का खेल है, जहां दुर्बुद्धि का बोलबाला है और लोग सत्य से विमुख होकर झूठे कर्मों में उलझे रहते हैं। जैसे कोई अंधेरे में बिना दीपक के रास्ता खोजे, वैसे ही राम-नाम के बिना व्यक्ति जीवन के उद्देश्य को नहीं पा सकता। साधु-संगति वह प्रकाश है, जो अज्ञान के तम को दूर करता है, पर मूर्ख मन उसकी ओर नहीं जाता और अपने कीमती जन्म को व्यर्थ गंवाता है।
राम-नाम की महिमा ऐसी है कि वह जीव को चौरासी लाख योनियों के चक्र से मुक्त कर परमपद तक ले जाता है। उदाहरण के लिए, जैसे कोई प्यासा जलाशय के पास होकर भी प्यासा रहे, वैसे ही प्रभु का नाम पास होते हुए भी उसे न अपनाने वाला दुख भोगता है। सच्चा मार्ग वही है, जो प्रभु की शरण में ले जाए, जहां न भय है, न दुख, केवल शांति और आनंद। जो जीव इस मार्ग पर चल पड़ता है, वह अपने जीवन को सार्थक कर लेता है।
संगति का प्रभाव गहरा होता है—पुण्य और सत्संग की अनुपस्थिति में चेतना मलिन हो जाती है, और बार-बार जन्म-मृत्यु के चक्र में पड़कर जीव अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ कर देता है। यह भूल घातक होती है, क्योंकि मुक्ति की राह सत्य और ईश्वर-भक्ति से होकर ही जाती है। जब तक हृदय उस अनंत शरण में नहीं समर्पित होता, तब तक शांति संभव नहीं।
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राम-नाम की महिमा ऐसी है कि वह जीव को चौरासी लाख योनियों के चक्र से मुक्त कर परमपद तक ले जाता है। उदाहरण के लिए, जैसे कोई प्यासा जलाशय के पास होकर भी प्यासा रहे, वैसे ही प्रभु का नाम पास होते हुए भी उसे न अपनाने वाला दुख भोगता है। सच्चा मार्ग वही है, जो प्रभु की शरण में ले जाए, जहां न भय है, न दुख, केवल शांति और आनंद। जो जीव इस मार्ग पर चल पड़ता है, वह अपने जीवन को सार्थक कर लेता है।