रंग भरी राग भरी रागसूं भरी री
रंग भरी राग भरी रागसूं भरी री
रंग भरी राग भरी रागसूं भरी री।होली खेल्या स्याम संग रंग सूं भरी, री ।।टेक।।
उड़त गलाल लाल बादला रो रंग लाल, पिचकां उड़ावां।
रंग-रंग री झरी, री।
चोवा चन्दण अरगजा म्हा, केसर णो गागर भरी री।
मीरां दासी गिरधरनागर, चेरी चरण धरी री।।
(राग=प्रेम, गागर=मटका, चेरी=चेली, दासी, धरी=पड़ी हुई)
सुन्दर भजन में श्रीकृष्णजी के साथ होली के रंगों में डूबने का दिव्य उदगार है। भक्ति और प्रेम के इस रंग से आत्मा आनंदमय हो उठती है। यह पर्व केवल बाहरी रंगों का नहीं, बल्कि हृदय के भीतर उमड़ती प्रेम और भक्ति की तरंगों का उत्सव है।
श्यामसुंदर के साथ होली खेलते हुए गालों पर गुलाल उड़ता है, वातावरण में प्रेम की सघन अनुभूति फैल जाती है। रंगों की वर्षा से मन प्रफुल्लित होता है और भक्त श्रीकृष्णजी की अनुकम्पा में सराबोर हो जाता है। चोवा, चंदन, अरगजा और केसर की सुगंध से यह उत्सव और भी मनोहर हो जाता है।
मीराबाई का भाव पूर्ण समर्पण का है—वे गिरिधर नागर के चरणों में चिर दासी बनकर प्रेम और भक्ति में विलीन हो जाती हैं। यह वह अवस्था है, जहाँ सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आत्मा केवल श्रीकृष्णजी के सान्निध्य में स्थित हो जाती है। रंगों की इस भक्ति से मन में माधुर्य और दिव्यता का अनुभव होता है, जिससे जीवन प्रेम और आनंद से परिपूर्ण हो जाता है। श्रीकृष्णजी की कृपा से होली के रंग भक्ति का सच्चा स्वरूप बन जाते हैं।