होरी खेलत हैं गिरधारी लिरिक्स

होरी खेलत हैं गिरधारी लिरिक्स

होरी खेलत हैं गिरधारी।
मुरली चंग बजत डफ न्यारो।
संग जुबती ब्रजनारी।।
चंदन केसर छिड़कत मोहन
अपने हाथ बिहारी।
भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग
स्यामा प्राण पियारी।
गावत चार धमार राग तहं
दै दै कल करतारी।।
फाग जु खेलत रसिक सांवरो
बाढ्यौ रस ब्रज भारी।
मीरा कूं प्रभु गिरधर मिलिया
मोहनलाल बिहारी।।
होरी खेलत हैं गिरधारी।।टेक।।
मुरली चंग बजत डफ न्यारो, संग जुवति ब्रजनारी।
चन्दन केसर छिरकत मोहन, अपने हाथ बिहारी।
भरि भरि मूठि गुलाल लाल चहुँ, देत सबने पै डारी।
छैल छबीले नबल कान्ह संग स्यामा, प्राण प्यारी।
गावत चार धमार राग तेंह, दै दै कल करतारी।
फागु जू खेलत रसिक साँवरो बाढ्यो रस ब्रज भारी।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, मोहन लाल बिहारी।।

(जुवति=युवति, नवल=नवयुवक, कल=सुन्दर,करतारी=हाथों की तालियां, रस=आनन्द)

Next Post Previous Post