कहाँ कहाँ जाऊं तेरे साथ, कन्हैया मीरा बाई पदावली
कहाँ कहाँ जाऊं तेरे साथ, कन्हैया
कहाँ कहाँ जाऊं तेरे साथ, कन्हैया।।टेक।।
बिन्द्रावन की कुँज गलिन में, गहे लीनो मेरो हाथ।
दध मेरो खायो मटकिया फोरी, लीनो भुज भर साथ।
लपट झपट मोरी गागर पटकी, साँवरे सलोने लोने गात।
कबहुँ न दान लियो मनमोहन, सदा गोकल आत जात।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, जनम जनम के नाथ।।
(गहे लीनो=पकड़ लिया, दध=दही, भुज भर=बाहु
पाश में बाँध लिया, लोने=सुन्दर)
चालो मान गंगा जमुना तीर गंगा जमुना तीर ॥ध्रु०॥
गंगा जमुना निरमल पानी शीतल होत सरीस ॥१॥
बन्सी बजावत गावत काना संग लीये बलवीर ॥२॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे । कुंडल झलकत हीर ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर चरनकमल शीर ॥४॥
नाथ तुम जानतहो सब घटकी । मीरा भक्ति करे प्रगटकी ॥ध्रु०॥
ध्यान धरी प्रभु मीरा संभारे पूजा करे अट पटकी ।
शालिग्रामकूं चंदन चढत है भाल तिलक बिच बिंदकी ॥१॥
राम मंदिरमें मीराबाई नाचे ताल बजावे चपटी ।
पाऊमें नेपुर रुमझुम बाजे । लाज संभार गुंगटकी ॥२॥
झेर कटोरा राणाजिये भेज्या संत संगत मीरा अटकी ।
ले चरणामृत मिराये पिधुं होगइ अमृत बटकी ॥३॥
सुरत डोरीपर मीरा नाचे शिरपें घडा उपर मटकी ।
मीराके प्रभु गिरिधर नागर सुरति लगी जै श्रीनटकी ॥४॥
राम रतन धन पायो मैया मैं तो राम ॥ध्रु०॥
संत संगत सद्गुरु प्रतापसे भाग बडो बनी आयो ।
खरच न खुटे न वांकूं चोर न लुटे दीन दीन होत सवायो ॥ मैं ० ॥१॥
नीर न डुबे वांकूं अग्नि न जाले धरणी धरयो न समायो ॥ मैं ० ॥२॥
नामको नाव भजनकी बतियां भवसागरसे तार्यो ॥ मैं ० ॥३॥
मीराबाई प्रभु गिरिधर शरने । चरनकमल चित्त लायो ॥ मैं ० ॥४॥