मीरा कृष्ण की उपासना मीरा बाई पदावली Padawali Meera Bai Meera Bhajan Hindi Lyrics
मीरा
कृष्ण की उपासना समर्पित पत्नी के रूप में करती है| वह स्पष्ट रूप से कहती
हैं कि कृष्ण के सिवा इस दुनिया में उनका कोई अपना नहीं है| मीरा का यह
प्रेम अलौकिक है जिसकी कोई परिभाषा नहीं है| कृष्ण के प्रति उनका प्रेम
निश्छल, समर्पित और आस्था से भरा है| वे स्वयं को कृष्ण की दासी मानती हैं|
जैसे बिना पुरुखकी नारी है । जैसे पुत्रबिना मातारी है ।
जलबिन सरोबर जैसा है । हरिनामबिना नर ऐसा है ॥१॥
जैसे सशीविन रजनी सोई है । जैसे बिना लौकनी रसोई है ।
घरधनी बिन घर जैसा है । हरिनामबिना नर ऐसा है ॥२॥
ठुठर बिन वृक्ष बनाया है । जैसा सुम संचरी नाया है ।
गिनका घर पूतेर जैसा है । हरिनम बिना नर ऐसा है ॥३॥
मीराबाई कहे हरिसे मिलना । जहां जन्ममरणकी नही कलना ।
बिन गुरुका चेला जैसा है । हरिनामबिना नर ऐसा है ॥४॥
क्या करूं मैं बनमें गई घर होती । तो शामकू मनाई लेती ॥ध्रु०॥
गोरी गोरी बईया हरी हरी चुडियां । झाला देके बुलालेती ॥१॥
अपने शाम संग चौपट रमती । पासा डालके जीता लेती ॥२॥
बडी बडी अखिया झीणा झीणा सुरमा । जोतसे जोत मिला लेती ॥३॥
मीराबाई कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमल लपटा लेती ॥४॥
अब तो रामनाम दुसरा न कोई ॥ध्रु०॥
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई । साधु संग बेठ बेठ लोकलाज खोई ॥१॥
संत देखी दौडे आई जगत देखी रोई । प्रेमका आसु डाल डाल अमर वेल बोई ॥२॥
मारगमें दोई तारण मीले संतराम दोई । संत हमारे शिश उपर राम हृदय होई ॥३॥
अंतमसे तंता काढयो पिछे रही सोई । राणे मै लिया विषका प्याला पिईने मगन होई ॥४॥
अब तो बात फेल गई जाने सब कोई । दासी मीरा बाई गिरिधर नागर होनारी सो होई ॥५॥
होरी खेलनकू आई राधा प्यारी हाथ लिये पिचकरी ॥ध्रु०॥
कितना बरसे कुंवर कन्हैया कितना बरस राधे प्यारी ॥ हाथ० ॥१॥
सात बरसके कुंवर कन्हैया बारा बरसकी राधे प्यारी ॥ हाथ० ॥२॥
अंगली पकड मेरो पोचो पकड्यो बैयां पकड झक झारी ॥ हाथ० ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तुम जीते हम हारी ॥ हाथ० ॥४॥