करुणा सुणो स्याम मेरी, मैं तो होय रही चेरी तेरी मीरा बाई पदावली
करुणा सुणो स्याम मेरी, मैं तो होय रही चेरी तेरी
करुणा(करणाँ) सुणो स्याम मेरी, मैं तो होय रही चेरी तेरी॥
दरसण कारण भई बावरी बिरह-बिथा तन घेरी।
तेरे कारण जोगण हूंगी, दूंगी नग्र बिच फेरी॥
कुंज बन हेरी-हेरी॥
अंग भभूत गले म्रिघछाला, यो तप भसम करूं री।
अजहुं न मिल्या राम अबिनासी बन-बन बीच फिरूं री॥
रोऊं नित टेरी-टेरी॥
जन मीरा कूं गिरधर मिलिया दुख मेटण सुख भेरी।
रूम रूम साता भइ उर में, मिट गई फेरा-फेरी॥
रहूं चरननि तर चेरी॥
(करणाँ,करुणा=करुण प्रार्थना, चेरी=चेली,दासी, बिथा=
व्यथा, नग्र=नगर, म्रिघछाला=मृगछाला, भेरी=पहुँचाने
वाले, रूम-रूम=रोम रोम, साता=शांति, फेराफेरी=
आवागमन, तर=तले,नीचे)
आज मेरेओ भाग जागो साधु आये पावना ॥ध्रु०॥
अंग अंग फूल गये तनकी तपत गये ।
सद्गुरु लागे रामा शब्द सोहामणा ॥ आ० ॥१॥
नित्य प्रत्यय नेणा निरखु आज अति मनमें हरखू ।
बाजत है ताल मृदंग मधुरसे गावणा ॥ आ० ॥२॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे छबी देखी मन मोहे ।
मीराबाई हरख निरख आनंद बधामणा ॥ आ० ॥३॥
जो तुम तोडो पियो मैं नही तोडू । तोरी प्रीत तोडी कृष्ण कोन संग जोडू ॥ध्रु०॥
तुम भये तरुवर मैं भई पखिया । तुम भये सरोवर मैं तोरी मछिया ॥ जो० ॥१॥
तुम भये गिरिवर मैं भई चारा । तुम भये चंद्रा हम भये चकोरा ॥ जो० ॥२॥
तुम भये मोती प्रभु हम भये धागा । तुम भये सोना हम भये स्वागा ॥ जो० ॥३॥
बाई मीरा कहे प्रभु ब्रजके बाशी । तुम मेरे ठाकोर मैं तेरी दासी ॥ जो० ॥४॥
मन अटकी मेरे दिल अटकी । हो मुगुटकी लटक मन अटकी ॥ध्रु०॥
माथे मुकुट कोर चंदनकी । शोभा है पीरे पटकी ॥ मन० ॥१॥
शंख चक्र गदा पद्म बिराजे । गुंजमाल मेरे है अटकी ॥ मन० ॥२॥
अंतर ध्यान भये गोपीयनमें । सुध न रही जमूना तटकी ॥ मन० ॥३॥
पात पातब्रिंदाबन धुंडे । कुंज कुंज राधे भटकी ॥ मन० ॥४॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे । सुरत रही बनशी बटकी ॥ मन० ॥५॥
फुलनके जामा कदमकी छैया । गोपीयनकी मटुकी पटकी ॥ मन० ॥६॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । जानत हो सबके घटकी ॥ मन अटकी० ॥७॥
भोलानाथ दिंगबर ये दुःख मेरा हरोरे ॥ध्रु०॥
शीतल चंदन बेल पतरवा मस्तक गंगा धरीरे ॥१॥
अर्धांगी गौरी पुत्र गजानन चंद्रकी रेख धरीरे ॥२॥
शिव शंकरके तीन नेत्र है अद्भूत रूप धरोरे ॥३॥
आसन मार सिंहासन बैठे शांत समाधी धरोरे ॥४॥
मीरा कहे प्रभुका जस गांवत शिवजीके पैयां परोरे ॥५॥