अँसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम बेल बोयी मीरा बाई पदावली
अँसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम बेल बोयी
अब तो बेल फ़ैल गई, आणंद-फल होयी
प्रस्तुत पंक्तियों में मीरा की कृष्ण के प्रति भाव-भक्ति का वर्णन किया
गया है| उसने अपने आँसुओं से कृष्ण के प्रेम रूपी बेल को सींच-सींच कर बड़ा
किया है| उनके प्रेम रुपी बेल में आनंद रुपी फल लग गए हैं अर्थात्
कृष्ण-प्रेम में वह इतनी विलीन हो गई हैं कि अब उन्हें अलौकिक आनंद प्राप्त
हो रहा है|
पतीया मैं कैशी लीखूं, लीखये न जातरे ॥ध्रु०॥
कलम धरत मेरा कर कांपत । नयनमों रड छायो ॥१॥
हमारी बीपत उद्धव देखी जात है । हरीसो कहूं वो जानत है ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल रहो छाये ॥३॥
मीरा बाई इस पद में अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के वियोग में डूबी हुई हैं। वह कहती हैं कि पत्र कैसे लिखूं, लिखते नहीं बनता। कलम उठाते ही हाथ कांपने लगता है और आंखों में आंसू भर आते हैं। उद्धव जी, हमारी विपत्ति देखकर जा रहे हैं, लेकिन हरि से कुछ नहीं कहते, जबकि वे सब जानते हैं। मीरा कहती हैं कि प्रभु गिरिधर नागर के चरण कमलों में ही मन लगा रहे।
इस पद में मीरा बाई की गहरी भक्ति और श्रीकृष्ण के प्रति उनका अटूट प्रेम प्रकट होता है। वह अपने प्रभु के वियोग में इतनी व्याकुल हैं कि पत्र लिखने में भी असमर्थ महसूस करती हैं। उनकी आंखों में आंसू और कांपते हाथ उनके गहरे प्रेम और समर्पण को दर्शाते हैं। वह उद्धव जी से अपेक्षा करती हैं कि वे उनकी पीड़ा को श्रीकृष्ण तक पहुंचाएं, लेकिन अंततः उन्हें विश्वास है कि उनके प्रभु सब जानते हैं और उनके चरणों में ध्यान लगाना ही उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
कीत गयो जादु करके नो पीया ॥ध्रु०॥
नंदनंदन पीया कपट जो कीनो । नीकल गयो छल करके ॥१॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे । कबु ना मीले आंग भरके ॥२॥
मीरा दासी शरण जो आई । चरणकमल चित्त धरके ॥३॥
हरी तुम कायकू प्रीत लगाई ॥ध्रु०॥
प्रीत लगाई परम दुःख दीनो । कैशी लाज न आई ॥१॥
गोकुल छांड मथुरेकु जाये । वामें कोन बराई ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । तुमकू नंद दुवाई ॥३॥
ये ब्रिजराजकूं अर्ज मेरी । जैसी राम हमारी ॥ध्रु०॥
मोर मुगुट श्रीछत्र बिराजे । कुंडलकी छब न्यारी ॥१॥
हारी हारी पगया केशरी जामा । उपर फुल हाजारी ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलिहारी ॥३॥
तैं मेरी गेंद चुराई । ग्वालनारे ॥ध्रु०॥
आबहि आणपेरे तोरे आंगणा । आंगया बीच छुपाई ॥१॥
ग्वाल बाल सब मिलकर जाये । जगरथ झोंका आई ॥२॥
साच कन्हैया झूठ मत बोले । घट रही चतुराई ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलजाई ॥४॥
कोई देखोरे मैया । शामसुंदर मुरलीवाला ॥ध्रु०॥
जमुनाके तीर धेनु चरावत । दधी घट चोर चुरैया ॥१॥
ब्रिंदाजीबनके कुंजगलीनमों । हमकू देत झुकैया ॥२॥
ईत गोकुल उत मथुरा नगरी । पकरत मोरी भय्या ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बजैया ॥४॥
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