पीया बिण रह्यां न जायां तन मण जीवण

पीया बिण रह्यां न जायां तन मण जीवण प्रीतम वारयां

पीया बिण रह्यां न जायां
पिया बिण रह्यां न जायां।।टेक।।
तन मण जीवण प्रीतम वारयां।
निस दिन जोवां बाट छब रूप लुभावां।
मीरां रे प्रभु आसा थारी दासी कंठ आवां।।
(पीया=प्रियतम, छब=शोभा, थारी=तुम्हारी, कंठ=गला,मन)
 
काना चालो मारा घेर कामछे। सुंदर तारूं नामछे॥ध्रु०॥
मारा आंगनमों तुलसीनु झाड छे। राधा गौळण मारूं नामछे॥१॥
आगला मंदिरमा ससरा सुवेलाछे। पाछला मंदिर सामसुमछे॥२॥
मोर मुगुट पितांबर सोभे। गला मोतनकी मालछे॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल चित जायछे॥४॥

प्रियतम के बिना जीवन सूना है, जैसे तन और मन बिना प्राण के अधूरे हैं। हर पल उसकी स्मृति में डूबा मन उसकी छवि को निहारता है, उसकी शोभा को हृदय में बसाता है। यह तड़प ऐसी है, जैसे कोई प्यासा सागर के किनारे खड़ा हो, फिर भी जल न पाए। प्रिय का नाम ही जीवन का आधार है, जो हर सांस में बस्ता है। उसकी भक्ति में डूबकर मन तुलसी के पौधे-सा पवित्र हो जाता है, जैसे आंगन में सुगंध बिखरती हो। उसका रूप, उसका गुण, उसका नाम—सब कुछ मन को मोह लेता है, जैसे मंदिर का दीपक अंधेरे को चीर देता हो। उसकी शरण में जाने वाला हृदय कमल-सा खिलता है, जहां न कोई भय है, न कोई कमी। यह प्रेम ऐसा है, जो हर दुख को भुला देता है, जैसे कोई मधुर स्वर कानों में गूंजकर सारी व्यथा हर ले। प्रियतम की यह खोज मन को शांत करती है, उसे सच्चे सुख का मार्ग दिखाती है।
 
काना तोरी घोंगरीया पहरी होरी खेले किसन गिरधारी॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत खेलत राधा प्यारी॥२॥
आली कोरे जमुना बीचमों राधा प्यारी॥३॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे कुंडलकी छबी न्यारी॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर चरनकमल बलहारी॥५॥

कान्हा कानरीया पेहरीरे॥ध्रु०॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे। खेल खेलकी गत न्यारीरे॥१॥
खेल खेलते अकेले रहता। भक्तनकी भीड भारीरे॥२॥
बीखको प्यालो पीयो हमने। तुह्मारो बीख लहरीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरण कमल बलिहारीरे॥४॥

कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी, तोरि बनसरी लागी मोकों प्यारीं॥ध्रु०॥
दहीं दुध बेचने जाती जमुना। कानानें घागरी फोरी॥ काना०॥१॥
सिरपर घट घटपर झारी। उसकूं उतार मुरारी॥ काना०॥२॥
सास बुरीरे ननंद हटेली। देवर देवे मोको गारी॥ काना०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारी॥ काना०॥४॥ 
 
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