पिया थारो नाम लुभाणी जी पिया थारो नाम लुभाणी जी।।टेक।। नाम लेतां तिरतां सुण्यां जग पाहण पाणी जी। कीरत कांइ णा किया, घमआ करम कुमाणी जी। गणका कीर पढ़ावतां, बैकुण्ठ बसाणी जी। अधर नाम कुन्जर लयां, दुख अवध घटाणी जी। गरुण छांड पग घाइयां, पसुजूबण पटाणीं जी। अजांमेल अध ऊधरे, जम त्रास णसानी जी। पुतनाम जम गाइयां, गज मारा जाणी जी। सरणागत थे वर दिया, परतीत पिछाणी जी। मीराँ दासी रावली, अपणी कर जाणी जी।।
(तिरतां=पार उतरता, पाहण=पाषाण,पत्थर, कीरत=शुभ कार्य, कुमाणी=घृणित कार्य, कीर=तोता, कुंजर=हाथी, अवध=अवधि, पसुजूण=पशु-योनि, पटाणी=समाप्त हो गई, अध=अघ,पाप, त्रास=दुःख, पुतनाम= पुत्र का नाम, परतीत=प्रतीत,विश्वास)
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सखी मेरी नींद नसानी हो। पिवको पंथ निहारत सिगरी, रैण बिहानी हो। सखियन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो। बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय, ऐसी ठानी हो। अंग-अंग ब्याकुल भई मुख, पिय पिय बानी हो। अंतर बेदन बिरहकी कोई, पीर न जानी हो। ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो। मीरा ब्याकुल बिरहणी, सुध बुध बिसरानी हो।
कागळ कोण लेई जायरे मथुरामां वसे रेवासी मेरा प्राण पियाजी॥ध्रु०॥ ए कागळमां झांझु शूं लखिये। थोडे थोडे हेत जणायरे॥१॥ मित्र तमारा मळवाने इच्छे। जशोमती अन्न न खाय रे॥२॥ सेजलडी तो मुने सुनी रे लागे। रडतां तो रजनी न जायरे॥३॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल तारूं त्यां जायरे॥४॥