अब मैं सरण तिहारी जी मोहि राखौ कृपा निधान
अब मैं सरण तिहारी जी, मोहि राखौ कृपा निधान मीरा बाई पदावली
अब मैं सरण तिहारी जी, मोहि राखौ कृपा निधान
अब मैं सरण तिहारी जी, मोहि राखौ कृपा निधान।
अजामील अपराधी तारे, तारे नीच सदान।
जल डूबत गजराज उबारे, गणिका चढ़ी बिमान।
और अधम तारे बहुतेरे, भाखत संत सुजान।
कुबजा नीच भीलणी तारी, जाणे सकल जहान।
कहं लग कहूँ गिणत नहिं आवै, थकि रहे बेद पुरान।
मीरा दासी शरण तिहारी, सुनिये दोनों कान।
अब मैं सरण तिहारी जी, मोहि राखौ कृपा निधान।
अजामील अपराधी तारे, तारे नीच सदान।
जल डूबत गजराज उबारे, गणिका चढ़ी बिमान।
और अधम तारे बहुतेरे, भाखत संत सुजान।
कुबजा नीच भीलणी तारी, जाणे सकल जहान।
कहं लग कहूँ गिणत नहिं आवै, थकि रहे बेद पुरान।
मीरा दासी शरण तिहारी, सुनिये दोनों कान।
(अजामील=अजामल, गज=हाथी, अधम=नीच,पापी)
आत्मा की पुकार उस परम कृपालु की शरण में है, जहाँ हर पापी, हर दुखी, हर असहाय को आश्रय मिलता है। प्रभु का करुणा सागर इतना विशाल है कि वह अजामील जैसे अपराधी को भी तार देता है, नीच समझे जाने वाले को भी अपने चरणों में स्थान देता है। यह कृपा वह रस्सी है, जो डूबते को किनारे तक खींच लाती है, जैसे गजराज को जल से उबारा गया।
गणिका का उद्धार, कुबजा और भीलनी का सम्मान, ये सभी उस प्रभु की लीला के रंग हैं, जो बिना भेदभाव के सबको गले लगाता है। यह प्रेम वह दीप है, जो अंधेरे कोनों में भी रोशनी बिखेरता है। जैसे कोई माँ अपने बच्चे के दोष भूलकर उसे सीने से लगाती है, वैसे ही प्रभु का हृदय हर भटके हुए के लिए खुला है।
संतों के वचन और शास्त्रों की गाथाएँ इस कृपा की गिनती में थक जाती हैं, फिर भी उसका अंत नहीं। यह अनंत दया है, जो हर युग, हर जीव को अपने में समेट लेती है। आत्मा जब ऐसी शरण में पड़ती है, तो वह न केवल मुक्त होती है, बल्कि प्रभु के साथ एक हो जाती है। यह विश्वास कि प्रभु हर पुकार को सुनता है, वह शक्ति देता है, जो जीवन के हर संकट को पार करा देता है।
गणिका का उद्धार, कुबजा और भीलनी का सम्मान, ये सभी उस प्रभु की लीला के रंग हैं, जो बिना भेदभाव के सबको गले लगाता है। यह प्रेम वह दीप है, जो अंधेरे कोनों में भी रोशनी बिखेरता है। जैसे कोई माँ अपने बच्चे के दोष भूलकर उसे सीने से लगाती है, वैसे ही प्रभु का हृदय हर भटके हुए के लिए खुला है।
संतों के वचन और शास्त्रों की गाथाएँ इस कृपा की गिनती में थक जाती हैं, फिर भी उसका अंत नहीं। यह अनंत दया है, जो हर युग, हर जीव को अपने में समेट लेती है। आत्मा जब ऐसी शरण में पड़ती है, तो वह न केवल मुक्त होती है, बल्कि प्रभु के साथ एक हो जाती है। यह विश्वास कि प्रभु हर पुकार को सुनता है, वह शक्ति देता है, जो जीवन के हर संकट को पार करा देता है।
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