जोशी को लाख बार बधाई है की आज मेरे घर पर श्याम आए हैं। आज मेरे मन में उमंग भर आई है, क्योंकि अब श्याम मेरे घर पर आए हैं। पांचों ज्ञानेन्द्रियों ने मिलकर श्याम के दर्शन का लाभ उठाया है। श्याम के दर्शन से इस जीव को दर्शन का लाभ मिला है प्राणों को सुख की प्राप्ति हुई है। अब मेरा दुःख दूर हो गया है और मेरा मनोरथ पूर्ण हुआ है। अब स्थान स्थान पर आनंद प्राप्त हुआ है। मीरा के जो प्रिय स्वामी हैं वे घर में पधारे हैं।
जोसीड़ा ने लाख बधाई रे अब घर आये स्याम॥ आज आनंद उमंगि भयो है जीव लहै सुखधाम। पांच सखी मिलि पीव परसिकैं आनंद ठामूं ठाम॥ बिसरि गयो दुख निरखि पियाकूं, सुफल मनोरथ काम। मीरा के सुखसागर स्वामी भवन गवन कियो राम॥
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जोसीड़ा ने लाख बधाई रे, अब घर आये स्याम ।। टेक ।। आजि आनंद उमँगि भयो है, जीव लहै सुखधाम । पाँच सखी मिलि पीव परसि कैं, आनँद ठामूँ ठाँम । बिसरि गई दुख निरखि पिया कूँ सुफल मनोरथ काम । मीराँ के सुख सागर स्वामी, भवन गवन कियो राम ।
Joseeda Ne Laakh Badhaee Re Ab Ghar Aaye Syaam. Aaj Aanand Umangi Bhayo Hai Jeev Lahai Sukhadhaam. Paanch Sakhee Mili Peev Parasikain Aanand Thaamoon Thaam. Bisari Gayo Dukh Nirakhi Piyaakoon, Suphal Manorath Kaam. Meeraake Sukhasaagar Svaamee Bhavan Gavan Kiyo Raam.
अपनी गरज हो मिटी सावरे हम देखी तुमरी प्रीत॥ध्रु०॥ आपन जाय दुवारका छाय ऐसे बेहद भये हो नचिंत॥ ठोर०॥१॥ ठार सलेव करित हो कुलभवर कीसि रीत॥२॥ बीन दरसन कलना परत हे आपनी कीसि प्रीत। मीरां के प्रभु गिरिधर नागर प्रभुचरन न परचित॥३॥
अब तो निभायाँ सरेगी, बांह गहेकी लाज। समरथ सरण तुम्हारी सइयां, सरब सुधारण काज॥ भवसागर संसार अपरबल, जामें तुम हो झयाज। निरधारां आधार जगत गुरु तुम बिन होय अकाज॥ जुग जुग भीर हरी भगतन की, दीनी मोच्छ समाज। मीरां सरण गही चरणन की, लाज रखो महाराज॥
अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥ माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई। साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥ सतं देख दौड आई, जगत देख रोई। प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥ मारग में तारग मिले, संत राम दोई। संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥ अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई। राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥ अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई। दास मीरां लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥
मीरा बाई ने राणा को यह समझाने की कोशिश की कि उनका सच्चा प्रेम और समर्पण केवल भगवान श्रीकृष्ण के प्रति है। राणा, जो उनके पति के परिवार से थे, मीरा की कृष्ण भक्ति से असंतुष्ट थे और चाहते थे कि मीरा अपने पारिवारिक कर्तव्यों को निभाए। लेकिन मीरा बाई ने राणा से साफ कहा कि वह केवल श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त हैं और सांसारिक बंधनों या राजसी जीवन में उनकी कोई रुचि नहीं है। उन्होंने राणा को यह समझाया कि भगवान कृष्ण उनके आराध्य हैं और वही उनके सच्चे पति हैं। मीरा के इस दृढ़ विश्वास और समर्पण ने उन्हें सांसारिक जीवन से ऊपर उठकर केवल भक्ति मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।