बरसै बदरिया सावन की भजन
बरसै बदरिया सावन की
बरसै बदरिया सावन की
बरसै बदरिया सावन की,
सावन की मनभावन की ।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा,
भनक सुनी हरि आवन की ॥
उमड घुमड चहुं दिस से आयो,
दामण दमके झर लावन की ।
नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै,
सीतल पवन सुहावन की ॥
मीरा के प्रभु गिरघर नागर,
आनन्द मंगल गावन की ॥
बरसै बदरिया सावन की,
सावन की मनभावन की ।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा,
भनक सुनी हरि आवन की ॥
उमड घुमड चहुं दिस से आयो,
दामण दमके झर लावन की ।
नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै,
सीतल पवन सुहावन की ॥
मीरा के प्रभु गिरघर नागर,
आनन्द मंगल गावन की ॥
सावन की बारिश मन को हरि के प्रेम से सराबोर कर देती है। बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमक के बीच मन उमड़ता है, जैसे प्रभु के आगमन की सुगंध हवा में बिखर गई हो। छोटी-छोटी बूंदों का मेघ और ठंडी हवा मन को शीतलता देती है। मीरां का मन गिरधर में डूबा है, जो आनंद और मंगल के गीत गाता है। यह भक्ति का वह रस है, जहां सावन की बरसात प्रभु के प्रेम का प्रतीक बन, आत्मा को आनंदमय कर देती है।
आज मारे साधुजननो संगरे राणा। मारा भाग्ये मळ्यो॥ध्रु०॥
साधुजननो संग जो करीये पियाजी चडे चोगणो रंग रे॥१॥
सीकुटीजननो संग न करीये पियाजी पाडे भजनमां भंगरे॥२॥
अडसट तीर्थ संतोनें चरणें पियाजी कोटी काशी ने कोटी गंगरे॥३॥
निंदा करसे ते तो नर्क कुंडमां जासे पियाजी थशे आंधळा अपंगरे॥४॥
मीरा कहे गिरिधरना गुन गावे पियाजी संतोनी रजमां शीर संगरे॥५॥
आज मेरेओ भाग जागो साधु आये पावना॥ध्रु०॥
अंग अंग फूल गये तनकी तपत गये।
सद्गुरु लागे रामा शब्द सोहामणा॥ आ०॥१॥
नित्य प्रत्यय नेणा निरखु आज अति मनमें हरखू।
बाजत है ताल मृदंग मधुरसे गावणा॥ आ०॥२॥
मोर मुगुट पीतांबर शोभे छबी देखी मन मोहे।
हरख निरख आनंद बधामणा॥ आ०॥३॥
होरी खेलनकू आई राधा प्यारी हाथ लिये पिचकरी॥ध्रु०॥
कितना बरसे कुंवर कन्हैया कितना बरस राधे प्यारी॥ हाथ०॥१॥
सात बरसके कुंवर कन्हैया बारा बरसकी राधे प्यारी॥ हाथ०॥२॥
अंगली पकड मेरो पोचो पकड्यो बैयां पकड झक झारी॥ हाथ०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तुम जीते हम हारी॥ हाथ०॥४॥
यह भी देखें You May Also Like