अच्छे मीठे फल चाख चाख मीरा बाई पदावली

अच्छे मीठे फल चाख चाख मीरा बाई पदावली

अच्छे मीठे फल चाख चाख
अच्छे मीठे फल चाख चाख, बेर लाई भीलणी।
ऐसी कहा अचारवती, रूप नहीं एक रती।
नीचे कुल ओछी जात, अति ही कुचीलणी।
जूठे फल लीन्हे राम, प्रेम की प्रतीत त्राण।
उँच नीच जाने नहीं, रस की रसीलणी।
ऐसी कहा वेद पढी, छिन में विमाण चढी।
हरि जू सू बाँध्यो हेत, बैकुण्ठ में झूलणी।
दास मीरा तरै सोई, ऐसी प्रीति करै जोइ।
पतित पावन प्रभु, गोकुल अहीरणी।
 
प्रभु का प्रेम वह मधुर फल है, जो बाहरी रूप, कुल, या जात देखे बिना हर आत्मा को स्वीकार करता है। भीलनी का प्रेम भरा बेर, भले जूठा हो, प्रभु के लिए सबसे मीठा है, क्योंकि उसमें सच्ची भक्ति का रस भरा है। यह प्रेम वह सुगंध है, जो फूल के रंग-रूप को नहीं, केवल उसकी निश्छलता को देखता है।

नीच समझे जाने वाले कुल की भीलनी हो या कोई और, प्रभु के लिए सब समान हैं। उनका हृदय वह सागर है, जो हर नदी को बिना भेदभाव गले लगाता है। यह प्रेम ही वह शक्ति है, जो क्षण में आत्मा को वैकुंठ तक ले जाती है, बिना वेद-शास्त्र की सीढ़ियों के। जैसे पवन किसी की ऊँच-नीच नहीं देखता, वैसे ही प्रभु का प्रेम हर भक्त को बाँध लेता है।

सच्ची प्रीति वही, जो मन को पतित से पावन बना दे। प्रभु वह गोकुल का राखनहार है, जो हर भटके हुए को अपनी शरण में लेता है। यह भक्ति वह झूला है, जो आत्मा को प्रभु के साथ प्रेम की मस्ती में झुलाता है, और जीवन को उनके रस में डुबो देता है। 
 
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