पिया कूँ बता दे मेरे

पिया कूँ बता दे मेरे

पिया कूँ बता दे मेरे
पिया कूँ बता दे मेरे, तेरा गुण मानूँगी।।टेक।।
खान पान मोहि फीको सो लागै, नैन रहे दोय छाय।
बार बार मैं अरज करत हूँ, रैण दिन जाय।
मीराँ के प्रभु बेग मिलो रे, तरस-तरस, जिय जाय।।


(फीको=स्वादहीन, नैन रहे होय दोय=दोनों आँखे आँसुओं से भरी हुई हैं, तरस-तरस जिय जाय= तड़प-तड़प कर प्राण निकले जाते हैं)
 
प्रभु के बिना जीवन का हर सुख फीका है, जैसे बिना नमक का भोजन स्वादहीन लगता है। मन की यह तड़प, जो बार-बार उनके मिलन की अर्ज करती है, वह प्यास है, जो केवल उनके दर्शन से बुझती है। आँखों में भरे आँसू, दिन-रात की बेचैनी, यह उस आत्मा का दुख है, जो प्रियतम के बिना अधूरी है।

प्रेम की यह पुकार सिखाती है कि सच्चा सुख संसार के खान-पान में नहीं, बल्कि प्रभु के गुणों को मानने में है। जैसे प्यासा जल के बिना तड़पता है, वैसे ही मन उनके बिना हर पल मुरझाता है। उनकी शरण में जाना, वह मार्ग है, जो हर व्यथा को शांत करता है।

यह प्रेम वह बंधन है, जो आत्मा को प्रभु से जोड़ता है। उनके बिना जीव का हृदय सूना है, और उनकी कृपा ही वह अमृत है, जो तड़पते प्राणों को जीवन देती है। मन को सदा उनके चरणों में रखो, क्योंकि वही सच्चा आधार है।
 
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आली , सांवरे की दृष्टि मानो, प्रेम की कटारी है॥
लागत बेहाल भई, तनकी सुध बुध गई ,
तन मन सब व्यापो प्रेम, मानो मतवारी है॥
सखियां मिल दोय चारी, बावरी सी भई न्यारी,
हौं तो वाको नीके जानौं, कुंजको बिहारी॥
चंदको चकोर चाहे, दीपक पतंग दाहै,
जल बिना मीन जैसे, तैसे प्रीत प्यारी है॥
बिनती करूं हे स्याम, लागूं मैं तुम्हारे पांव,
मीरा प्रभु ऐसी जानो, दासी तुम्हारी है॥

कठण थयां रे माधव मथुरां जाई, कागळ न लख्यो कटकोरे॥ध्रु०॥
अहियाथकी हरी हवडां पधार्या। औद्धव साचे अटक्यारे॥१॥
अंगें सोबरणीया बावा पेर्या। शीर पितांबर पटकोरे॥२॥
गोकुळमां एक रास रच्यो छे। कहां न कुबड्या संग अतक्योरे॥३॥
कालीसी कुबजा ने आंगें छे कुबडी। ये शूं करी जाणे लटकोरे॥४॥
ये छे काळी ने ते छे। कुबडी रंगे रंग बाच्यो चटकोरे॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। खोळामां घुंघट खटकोरे॥६॥

करुणा सुणो स्याम मेरी, मैं तो होय रही चेरी तेरी॥
दरसण कारण भई बावरी बिरह-बिथा तन घेरी।
तेरे कारण जोगण हूंगी, दूंगी नग्र बिच फेरी॥
कुंज बन हेरी-हेरी॥
अंग भभूत गले मृगछाला, यो तप भसम करूं री।
अजहुं न मिल्या राम अबिनासी बन-बन बीच फिरूं री॥
रोऊं नित टेरी-टेरी॥
जन मीरा कूं गिरधर मिलिया दुख मेटण सुख भेरी।
रूम रूम साता भइ उर में, मिट गई फेरा-फेरी॥
रहूं चरननि तर चेरी॥

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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