अब तो निभायाँ सरेगी मीरा बाई पदावली

अब तो निभायाँ सरेगी मीरा बाई पदावली

अब तो निभायाँ सरेगी
अब तो निभायाँ सरेगी, बांह गहेकी लाज।।टेक।।
समरथ सरण तुम्हारी सइयां, सरब सुधारण काज॥
भवसागर संसार अपरबल, जामें तुम हो झयाज। 
निरधारां आधार जगत गुरु तुम बिन होय अकाज॥
जुग जुग भीर हरी भगतन की, दीनी मोच्छ समाज।
मीरां सरण गही चरणन की, लाज रखो महाराज॥
 
आत्मा जब प्रभु की शरण में आती है, तो उसका हर संकट, हर बोझ उनके चरणों में समर्पित हो जाता है। यह विश्वास कि प्रभु ने बाँह थाम ली है, वह शक्ति देता है, जो जीवन की हर लाज को निभा देती है। जैसे कोई बच्चा माँ की गोद में निश्चिंत हो जाता है, वैसे ही भक्त प्रभु की कृपा में सुरक्षित हो जाता है।

प्रभु वह समर्थ सखा है, जो हर कार्य को सुधार देता है। यह संसार भवसागर है, जहाँ लहरें डराती हैं, पर प्रभु वह नाविक है, जो झयाज बनकर पार लगाता है। बिना उनके आधार के जगत में कुछ भी सार्थक नहीं, जैसे बिना जड़ के वृक्ष नहीं उगता। वे ही जगत के गुरु हैं, जिनके बिना हर प्रयास अधूरा रहता है।

युगों-युगों से प्रभु ने भक्तों की पुकार सुनी, उनकी रक्षा की, और मोक्ष का द्वार खोला। यह करुणा वह सूरज है, जो हर अंधेरे को मिटा देता है। चरणों की शरण में पड़कर आत्मा केवल एक ही प्रार्थना करती है—हे महाराज, मेरी लाज रखो। यह समर्पण वह बंधन है, जो कभी टूटता नहीं, और भक्त को सदा प्रभु के रंग में रंगाए रखता है।
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