वह असीरे-दामे-बला हूँ मैं

वह असीरे-दामे-बला हूँ मैं

वह असीरे-दामे-बला हूँ मैं, जिसे सांस तक भी न आ सके

वह असीरे-दामे-बला हूँ मैं, जिसे सांस तक भी न आ सके ।
वह कतीले-खंजरे जुल्म हूँ, जो न आँख अपनी फिरा सके ।

मिरा हिन्दुकुश हुआ हिन्दुकश, ये हिमालिया है दिवालिया,
मेरी गंगा-जनुमा उतर गयी हैं, बस इतनी हैं की नहा सके ।

मेरे बच्चे भीख मांगते हैं, उन्हें टुकड़ा रोटी का कौन दे,
जहां जावें कहें परे-परे, कोई पास तक न बिठा सके ।

मेरे कोहेनूर को क्या हुआ, उसे टुकड़े-टुकड़े ही कर दिया,
उसे खाक में ही मिला दिया, नहीं ऐसा कोई कि ला सके ।

इस देशभक्ति गीत में मातृभूमि की पीड़ा और उसके गौरव की पुकार गहरे उदगार के साथ उभरती है। हिंदुस्तान एक ऐसे बंदी की तरह है, जो जंजीरों में जकड़ा होने पर भी अपनी सांसों को आजाद रखने की जिद रखता है। हिमालय की दरिद्रता और गंगा-यमुना की क्षीण धारा देश के गौरव के पतन की कथा कहती हैं, फिर भी वे अपने अस्तित्व को बनाए रखती हैं, जैसे कोई तपस्वी विपत्ति में भी अडिग रहे।

बच्चों की भूख और अपमान की यह चीत्कार हृदय को झकझोरती है, जो समाज की उदासीनता को उजागर करती है। कोहिनूर का टुकड़ों में बिखर जाना और खाक में मिल जाना देश की खोई समृद्धि का प्रतीक है, जिसे कोई वापस लाने को तैयार नहीं। यह गीत देशवासियों को जागृत करने की पुकार है, जो बलिदान और समर्पण से वतन की खोई शान को पुनर्जनन दे, ताकि आत्मा गर्व और शांति से भर उठे।

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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