प्रथमहि घुटुरन चलत कन्हैया

प्रथमहि घुटुरन चलत कन्हैया

प्रथमहि घुटुरन चलत कन्हैया
प्रथमहि घुटुरन चलत कन्हैया,
मोर मुकुट पीत झगुली सोहत,
कनक पैजनी बाजत पइयाँ,
प्रथमहि घुटुरन चलत कन्हैया-------

गिरत परत फिरि पुलकित देखत,
सीखत श्याम अब
चलन बकईयाँ,
प्रथमहि घुटुरन चलत कन्हैया------

निरखि निरखि सुत नन्द यशोदा,
ऊर आनंदित लेत बलैया,
प्रथमहि घुटुरन चलत कन्हैया------

सिसु विनोद हरि करत अगनवां,
नन्द भवन खूब बजत बधईया,
प्रथमहि घुटुरन चलत कन्हैया-





सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी के बाल रूप का माधुर्य प्रदर्शित किया गया है। उनकी प्रथम चेष्टाएँ, उनकी चपलता और उनके घुटनों के बल चलने का दृश्य ऐसा है, जो न केवल नंद-यशोदा के हृदय को पुलकित करता है, बल्कि समस्त ब्रजवासियों को आनंदित कर देता है।

मोर मुकुट और पीतांबर धारण किए श्रीकृष्णजी जब छोटे-छोटे चरणों से आगे बढ़ते हैं, तब उनकी हर चेष्टा एक दिव्य लीला बन जाती है। उनकी कर्णप्रिय पायल की ध्वनि संपूर्ण वातावरण में आनंद का संचार करती है, और यह अनुभूति हर भक्त के हृदय में मधुर स्मृतियों की छवि अंकित कर देती है।

नंद बाबा और यशोदाजी का हर्ष इस क्षण में पराकाष्ठा पर होता है—वे अपने लाडले के प्रथम कदमों को देखकर प्रेम और वात्सल्य से अभिभूत हो जाते हैं। यह अनुभूति केवल एक माता-पिता की भावनाओं तक सीमित नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि में आनंद का संदेश फैलाने वाली है।
Next Post Previous Post