दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ कबीर भजन

इस भजन का सन्देश यह है कि मनुष्य को अपने जीवन में भक्ति को सर्वोच्च स्थान देना चाहिए। भक्ति से ही मनुष्य को सुख और शांति मिल सकती है। कबीर जी कहते हैं कि मनुष्य का मन भजन के बिना दुखी रहता है। जो लोग भक्ति नहीं करते हैं, वे अपने जीवन में दुखों का सामना करते हैं। कबीर जी कहते हैं कि जो लोग भक्ति नहीं करते हैं, वे अपने जीवन में विभिन्न योनियों में जन्म लेते हैं। वे भूत, पक्षी, बंदर, बैल, ऊँट, गधा और कौवा बनते हैं। इन सभी योनियों में उन्हें दुखों का सामना करना पड़ता है।

दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ लिरिक्स Diwane Man Bhajan Bina Lyrics

दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ भजन

दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ,
पहिला जनम भूत का पै हौ,
सात जनम पछिताहौ,
कॉंटा पर का पानी पैहौ,
प्यासन ही मरि जैहौ।

दूजा जनम सुवा का पैहौ,
बाग बसेरा लैहौ,
टूटे पंख मॅंडराने,
अधफड प्रान गॅंवैहौ,

बाजीगर के बानर हो हौ,
लकडिन नाच नचैहौ,
ऊँच नीच से हाय पसरि हौ,
मॉंगे भीख न पैहौ,

तेली के घर बैला होहौ,
ऑंखिन ढॉंपि ढॅंपैहौ,
कोस पचास घरै मॉं चलिहौ,
बाहर होन न पैहौ,

पॅंचवा जनम ऊँट का पैहौ,
बिन तोलन बोझ लदैहौ,
बैठे से तो उठन न पैहौ,
खुरच खुरच मरि जैहौ,

धोबी घर गदहा होहौ,
कटी घास नहिं पैंहौ,
लदी लादि आपु चढि बैठे,
लै घटे पहुँचैंहौ,

पंछिन मॉं तो कौवा होहौ,
करर करर गुहरैहौ,
उडि के जय बैठि मैले थल,
गहिरे चोंच लगैहौ,

सत्तनाम की हेर न करिहौ,
मन ही मन पछितैहौ,
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
नरक नसेनी पैहौ ,
नरक नसेनी पैहौ,
नरक नसेनी पैहौ,
दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ,
पहिला जनम भूत का पै हौ,
सात जनम पछिताहौ,
कॉंटा पर का पानी पैहौ,
प्यासन ही मरि जैहौ।

भजन की व्याख्या हिंदी में :
भजन का मूल भाव है यदि मालिक को याद नहीं किया, सुमिरन नहीं किया, सद्कार्य नहीं किये तो अगला जन्म कैसा मिलेगा। मानव देह बहुत ही जतन के बाद मिली है लेकिन हम इसकी महत्ता को स्वीकार नहीं कर पाते हैं। हम अपने ही बने जाल में फँस कर रह जाते है। मन को दीवाना कहा है क्यों की ये सही मायने में सांसारिक माया जाल की और स्वाभाविक रूप से आकर्षित होता है। ईश्वर / मालिक में इसका मन नहीं लगता इसे बुराइयां अपनी और लुभाती हैं और ये उस ओर ही दौड़ने लग जाता है। 


भक्ति के बिना जीवन दुखमय है। कबीर कहते हैं कि मनुष्य का मन भजन के बिना दुखी रहता है। जो लोग भक्ति नहीं करते हैं, वे अपने जीवन में दुखों का सामना करते हैं। कबीर कहते हैं कि मनुष्य को अपने जीवन में भक्ति को सर्वोच्च स्थान देना चाहिए। भक्ति से ही मनुष्य को सुख और शांति मिल सकती है।

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