कबीर कहते हैं कि हमें अपने जीवन में ईश्वर की भक्ति में लग जाना चाहिए। हमें अपने मन को बाहरी दुनिया से बंद कर देना चाहिए और अपने अंतर्मन की खोज करनी चाहिए। कबीर कहते हैं कि हमें अपने मन को भटकने से रोकना चाहिए और उसे ईश्वर की ओर मोड़ना चाहिए। कबीर कहते हैं कि दुख में तो सभी लोग ईश्वर की याद करते हैं, लेकिन सुख में कोई भी ईश्वर की याद नहीं करता है। अगर हम सुख में भी ईश्वर की याद करते हैं, तो हमें दुख नहीं होगा।
तूने रात गवाई सोय के लिरिक्स Tune Raat Gavayi Soy Lyrics, Kabir Bhajan
तूने रात गँवायी सोय के,दिवस गँवाया खाय के,
हीरा जनम अमोल था,
कौड़ी बदले जाय,
तूने रात गवाई सोय के।
तूने रात गँवायी सोय के,
दिवस गँवाया खाय के,
हीरा जनम अमोल था,
कौड़ी बदले जाय,
तूने रात गवायी सोय के।
सुमिरन लगन लगाय के,
मुख से कछु ना बोल रे,
बाहर का पट बंद कर ले,
अंतर का पट खोल रे,
तूने रात गवायी सोय के।
माला फेरत जुग हुआ,
गया ना मन का फेर रे,
गया ना मन का फेर रे,
हाथ का मनका छाँड़ि दे,
मन का मनका फेर,
तूने रात गवायी सोय के।
तूने रात गँवायी सोय के,
दिवस गँवाया खाय के,
हीरा जनम अमोल था,
कौड़ी बदले जाय,
तूने रात गवायी सोय के।
दुख में सुमिरन सब करें,
सुख में करे न कोय रे,
जो सुख में सुमिरन करे,
तो दुख काहे को होय रे,
तूने रात गवायी सोय के।
सुख में सुमिरन ना किया,
दुख में करता याद रे,
दुख में करता याद रे,
कहे कबीर उस दास की,
कौन सुने फ़रियाद,
तूने रात गवायी सोय के।
तूने रात गंवाई सोय के,
दिवस गँवाया खाय के,
हीरा जनम अमोल था,
कौड़ी बदले जाय,
तूने रात गवायी सोय के।
तूने रात गँवायी सोय के,
दिवस गँवाया खाय के,
हीरा जनम अमोल था,
कौड़ी बदले जाय,
तूने रात गवाई सोय के।
कबीर साहेब बताया की आध्यात्मिक जागृति और अपने वास्तविक स्वरूप की अनुभूति के माध्यम से अज्ञानता को दूर किया जा सकता है। साहेब ने जागरूकता स्थिति को प्राप्त करने के लिए आत्म-चिंतन, आत्म-अनुशासन और ध्यान के अभ्यास के महत्व पर जोर दिया।
कबीर की शिक्षाओं ने भौतिक दुनिया से अलग होने की भावना पैदा करने और बाहरी कारकों के बजाय आंतरिक स्व पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। कबीर साहेब ने विचारों की अधिक स्पष्टता, आत्म जागरूकता में वृद्धि होगी और अंततः अज्ञानता का उन्मूलन होगा के लिए आत्म अनुशासन पर पर जोर दिया।
व्यावहारिक रूप से, कबीर साहेब ने सभी लोगों से कहा की वे ग्यानी व्यक्तियों की संगति की तलाश करें, दूसरों की निःस्वार्थ सेवा में संलग्न हों, मन को शुद्ध करें। अंततः, कबीर की शिक्षाओं का लक्ष्य लोगों को यह समझाना था की मानव जीवन महत्पूर्ण है, ईश्वर की भक्ति ही संसार में आने का सार थी
तूने रात गँवायी सोय के भजन का भावार्थ हिंदी में :
ये मनुष्य जन्म अनमोल था, इसकी क़द्र नहीं की और अज्ञानता में इसे व्यर्थ ही खो दिया। रात सोने में व्यर्थ कर दी और दिवस गवाया खाने पिने में। हीरे जैसे जीवन को यूँ ही कौड़ी में बदल दिया। बहुत जतन से मानुस जन्म मिला था ईश्वर भक्ति के लिए लेकिन तृष्णा और विषय विकार में फंसकर रह गया, इसका मोल कौड़ी जितना रह गया। बाह्याचार से कोई लाभ होने वाला नहीं है। भक्ति केवल दिखावे की नहीं होनी चाहिए जो बस सांकेतिक हो। ईश्वर का ध्यान तो मन से करना चाहिए। जब तक मन भक्ति में नहीं रमेगा आचरण की शुद्धता नहीं आएगी। जब तक बाहर ध्यान होगा मन के भीतर ज्योतिर्स्वरूप का वाश नहीं होगा।आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
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