इस भजन का भाव यह है कि मनुष्य का जीवन बहुत ही मूल्यवान है। इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। मनुष्य अपना जीवन माया, मोह और सांसारिक सुखों में व्यर्थ कर देता है। जब उसे अपने जीवन का अंत दिखाई देता है, तब उसे मोह त्यागने का मन होता है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। कबीर कहते हैं कि मनुष्य को अपने जीवन का सदुपयोग करना चाहिए। उसे अपने जीवन में ईश्वर की भक्ति, साधुओं की संगति और अच्छे कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। तभी वह अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।
उमरिया धोखे में खोये दियो रे लिरिक्स Umariya Dhokhe Me Khoy Lyrics, Umariya Dhokhe Me Khoy Diyo Re
उमरिया धोखे में खोये दियो रे,धोखे में खोये दियो रे।
पाँच बरस का भोला भाला
बीस में जवान भयो।
तीस बरस में माया के कारण,
देश विदेश गयो।
उमरिया धोखे में खोय दियो रे,
धोखे में खोये दियो रे।
चालिस बरस अन्त अब लागे,
बाढ़ै मोह गयो,
धन धाम पुत्र के कारण,
निस दिन सोच भयो,
उमरिया धोखे में खोय दियो रे,
धोखे में खोये दियो रे।
बरस पचास कमर भई टेढ़ी,
सोचत खाट परयो,
लड़का बहुरी बोलन लागे,
बूढ़ा मर न गयो,
उमरिया धोखे में खोय दियो रे,
धोखे में खोये दियो रे।
बरस साठ-सत्तर के भीतर,
केश सफेद भयो।
वात पित कफ घेर लियो है,
नैनन निर बहो,
उमरिया धोखे में खोय दियो रे,
धोखे में खोये दियो रे।
न हरि भक्ति न साधो की संगत,
न शुभ कर्म कियो।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
चोला छुट गयो।।
उमरिया धोखे में खोय दियो रे,
धोखे में खोये दियो रे।
उमरिया धोखे में खोये दियो रे,
धोखे में खोये दियो रे।
पाँच बरस का भोला भाला
बीस में जवान भयो।
तीस बरस में माया के कारण,
देश विदेश गयो।
उमरिया धोखे में खोय दियो रे,
धोखे में खोये दियो रे।
उमरिया धोखे में बीत गयो रे || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2017)
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