कबीर की साखी हिंदी अर्थ सहित
आत्माँ अनंदी जोगी, पीवै महारस अंमृत भोगी॥टेक॥
ब्रह्म अगनि काया परजारी, अजपा जाप जनमनी तारी॥
त्रिकुट कोट मैं आसण माँड़ै, सहज समाधि विषै सब छाँड़ै॥
त्रिवेणी बिभूति करै मन मंजन, जन कबीर प्रभु अलष निरंजन॥
यह पद संत कबीर की रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने योग, ध्यान, और आत्मा की स्थिति का वर्णन किया है।
पद का अर्थ:
आत्माँ अनंदी जोगी, पीवै महारस अंमृत भोगी।आत्मा आनंदित योगी है, जो अमृत रस का सेवन करता है।
ब्रह्म अगनि काया परजारी, अजपा जाप जनमनी तारी।ब्रह्म की अग्नि शरीर में प्रज्वलित है, और अजपा जाप (स्वयं चलने वाला मंत्र) जन्मों को पार करता है।
त्रिकुट कोट मैं आसण माँड़ै, सहज समाधि विषै सब छाँड़ै।त्रिकुट (तीन बिंदु) में आसन स्थापित करता है, सहज समाधि में सभी विषयों को छोड़ देता है।
त्रिवेणी बिभूति करै मन मंजन, जन कबीर प्रभु अलष निरंजन।त्रिवेणी (तीन नदियों का संगम) की भस्म से मन को मलता है, कबीर कहते हैं, प्रभु अलक्ष्य और निरंजन हैं।
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