मैं वृन्दावन को जाऊँ ।
क्यो तू वृन्दावन को जावे,
आज मोहे तू साच बताय दे
तेरो क्या 3 खसम लगे बनवारी रे,
मैं तो वृन्दावन को जाऊँ ।।2।।
क्यों तू मुझसे ये सब पूछे
तेरे भेजे में नही आवे
वासे 3 मेरी जन्म जन्म की यारी है ।।2।।
गौर निताई एक बात बताय दे
यशोमति काहे पल्ले बांधे
जाकी3 मति गयी है मारी रे ।।3।।
पद
नैना लड़े मुरलिया वाले से
मैं वृन्दावन को जाऊँ ।
क्यो तू वृन्दावन को जावे
आज मोहे तू साच बताय दे
तेरो क्या 3 खसम लगे बनवारी रे,
मैं तो वृन्दावन को जाऊँ ।।2।।
क्यों तू मुझसे ये सब पूछे
तेरे भेजे में नही आवे
वासे 3 मेरी जन्म जन्म की यारी है ।।2।।
गौर निताई एक बात बताय दे
यशोमति काहे पल्ले बांधे
जाकी3 मति गयी है मारी रे ।।3।।
भावार्थ
इस पद में एक गोपी अपने प्रियतम कृष्ण से कह रही है कि मैं तुम्हारी मुरलिया की धुन से मोहित हो गई हूँ और तुम्हारे दर्शन के लिए वृन्दावन जाना चाहती हूँ। कृष्ण उसकी इस इच्छा को पूछकर उसे छेड़ रहे हैं और कह रहे हैं कि क्या तू मेरे अलावा किसी और से भी प्यार करती है? गोपी कहती है कि मैं तुम्हारी जन्म-जन्मांतर की मित्र हूँ और तुम्हारे अलावा किसी और को नहीं जानती। वह कृष्ण से कहती है कि यशोमति क्यों मेरे पल्ले बांध रही है, जबकि मैं तो तुम्हारी हूँ।
व्याख्या
इस पद में कृष्ण और गोपी के प्रेम का वर्णन किया गया है। गोपी कृष्ण की मुरलिया की धुन से मोहित हो जाती है और उनके दर्शन के लिए वृन्दावन जाना चाहती है। कृष्ण उसकी इस इच्छा को पूछकर उसे छेड़ रहे हैं, लेकिन गोपी अपने प्रेम का इजहार करती है और कहती है कि वह केवल कृष्ण की है।
शब्दार्थ
नैना लड़े - आँखें लड़ गईं, मोहित हो गईं
मुरलिया वाले - कृष्ण, जो मुरलिया बजाते हैं
वृन्दावन - कृष्ण का निवास स्थान
खसम - पति
बनवारी - कृष्ण
भेजे में - इशारे में
यारी - दोस्ती
पल्ले बांधना - रोकना, रोक देना
मति गयी है - बुद्धि भ्रष्ट हो गई है
संगीत
यह पद एक लोकप्रिय भजन है जिसे कई गायकों ने गाया है। यह एक धीमी गति वाला भजन है और इसमें राग भैरवी का प्रयोग किया गया है।
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