पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द ना जाने कोय Pinjare Ke Panchhi Re Pinjare Ke Panchhi Re Tera Darad Na Jane Koy
पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द ना जाने कोए तेरा दर्द ना जाने कोए।। कह ना सके तू अपनी कहानी तेरी भी पंछी क्या जिंदगानी रे
विधि ने तेरी कथा लिखी है आँसू में कलम डुबोय तेरा दर्द ना जाने कोए।।
चुपके चुपके रोने वाले, छुपाके रखना, दिल के छाले रे ये पत्थर का देश हैं पगले यहाँ कोई ना तेरा होय
devotional Bhajan Lyrics in Hindi
तेरा दर्द ना जाणे कोए।। पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द ना जाणे कोए तेरा दर्द ना जाणे कोए।।
इस गाने के बारे में : फिल्म : नाग मणि 1957 गायक : कवि प्रदीप लेखक : कवि प्रदीप म्यूजिक कम्पोजर : अविनाश व्यास
कवि प्रदीप: कवि प्रदीप सरल स्वभाव के थे। कवि प्रदीप का मूल नाम रांचद्र द्विवेदी था और फिल्मों में बड़े नाम को लेकर हो रही दिक्कत के कारन उन्होंने अपना राम "कवि प्रदीप" रखा था। 1997 -1998 में कवि प्रदीप को उनके हिंदी सिनेमा जगत में उत्कृष्ट योगदान के लिए दादा साहब फाल्के पुरुस्कार दिया गया था। इसके आलावा उन्हें संत ज्ञानेश्वर पुरस्कार, छत्रपति शिवाजी पुरस्कार से भी नवाजा गया है। जब कवि प्रदीप बॉम्बे आये थे तब वो 25 वर्ष के थे और उन्होंने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत "बंधन" फिल्म के गीत लिखने से की। कवि प्रदीप को उनके राष्ट्रभक्ति गीतों के लिए जाना जाता है लेकिन उन्होंने अपने फिल्मी करियर में १६०० फिल्मी और गैर फिल्मी गीत लिखे। कवि प्रदीप ने फिल्मों में भजन भी लिखे और गाये जो काफी प्रसिद्ध हुए हैं। उनके गीतों में "देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान्, कितना बदल गया इंसान-(नास्तिक)", "तेरे द्वार खड़ा भगवान् भगत भर दे रे झोली-(वामन अवतार ) ", अपनी संतोषी माँ-(संतोषी माँ )" काफी लोकप्रिय हुए है। इसके आलावा "पिंजरे की पंछी रे (नागमणि) और कोई लाख करे चतुराई (चण्डीपूजा) भी बहुत प्रसिद्ध हैं।
Pinjare ke panchhi re Tera dard na jaane koe Bahar se khamosh rahe tu Bhitar bhitar roi re hay e bhitar bhitar roi Tera dard na jaane koe
PINJARE KE PANCHHI RE - By Ram Lakhan Prasad
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यह एक हिंदी फिल्म गीत है जिसे कवि प्रदीप ने लिखा था और जिसे 1957 की फिल्म नागमणी के लिए संगीतकार अविनाश व्यास ने संगीत दिया था। इसे कवि प्रदीप ने गाया था। यह गीत एक पिंजरे में बंद पक्षी के बारे में है जो अपनी स्वतंत्रता की इच्छा रखता है। पक्षी अपने पिंजरे से बाहर निकलना चाहता है, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकता है। वह अपनी पीड़ा और निराशा को व्यक्त नहीं कर सकता है।
Author - Saroj Jangir
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