राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी

राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी

राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी,
की बृज की कहानी हो गयी
एक भोली भाली ग्वाल की ग्वालिन,
तो पंडितों की वानी हो गई

राधा न होती तो वृन्दावन भी न होता
कान्हा तो होते बंसी भी होती,
बंसी मैं प्राण न होते
प्रेम की भाषा जानता न कोई
कन्हैया को योगी मानता न कोई
बिना परिणय के देख प्रेम की पुजारीन
कान्हा की पटरानी हो गयी
राधा ऐसी भाई श्याम की

राधा की पायल न बजती तो 
मोहन ऐसा न रास रचाते
निंदिया चुराकर , मधुवन बुलाकर
अंगुली पे किसको नचाते
क्या ऐसी खुशबु चन्दन मैं होती
क्या ऐसी मीश्री माखन मैं होती
थोडा सा माखन खिलाकर वो ग्वालिन
अन्नपुर्ना सी दानी हो गयी
राधा ऐसी भाई श्याम की..........

राधा न होती तो कुंज गली भी
ऐसी निराली न होती
राधा के नैना न रोते तो
जमुना ऐसी काली न होती
सावन तो होता जुले न होते
राधा के संग नटवर जुले ना होते
सारा जीवन लूटन के वोह भीखारन
धनिकों की राजधानी हो गयी
राधा ऐसी भाई श्याम की....


Radha aisi bhai Shyam ki diwani‏ by Anup Jalota

सुंदर भजन में राधारानी और श्रीकृष्णजी के प्रेम की वो अनोखी कहानी बयाँ होती है, जो बृज की गलियों को अमर कर देती है। राधारानी का प्रेम इतना गहरा है कि एक साधारण ग्वालिन पंडितों की वाणी बन जाती है। उनका प्रेम सिर्फ एक रिश्ता नहीं, बल्कि वो आग है, जो वृंदावन को रौशन करती है। अगर राधारानी न होतीं, तो न वृंदावन की वो मधुर छटा होती, न बंसी की तान में प्राण होते। यह उनका प्रेम ही है, जो श्रीकृष्णजी को नटवर बनाता है और प्रेम की भाषा को दुनिया तक पहुँचाता है। राधारानी के बिना कुंज गलियाँ भी अधूरी होतीं, जमुना का पानी भी उतना गहरा न होता। उनके आँसुओं ने ही जमुना को उसकी गहराई दी, उनके प्रेम ने ही सावन को झूलों की रौनक दी। वह एक ऐसी भिखारिन हैं, जो अपने प्रेम से सारी दुनिया को धनवान बना देती हैं। जैसे कोई धर्मगुरु सिखाता है कि सच्चा प्रेम ही जीवन का सबसे बड़ा धन है, वैसे ही राधारानी का प्रेम श्रीकृष्णजी को राजा और उन्हें बृज की पटरानी बनाता है।

राधारानी और श्रीकृष्णजी के प्रेम की कहानी में प्रेम, भक्ति और आत्मिक एकता का सर्वोच्च उदाहरण मानी जाती है। राधा और कृष्ण का प्रेम सांसारिक बंधनों से परे, पूरी तरह नि:स्वार्थ और आध्यात्मिक था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राधा ने श्रीकृष्ण को पहली बार देखा तो वे उनकी ओर आकर्षित हो गईं और उन्हें ऐसा आभास हुआ कि कृष्ण से उनका कोई पूर्व जन्म का संबंध है।

राधा-कृष्ण का प्रेम केवल रोमांटिक नहीं, बल्कि अत्यंत आध्यात्मिक था। कहा जाता है कि राधा श्रीकृष्ण की शाश्वत जीवन संगिनी थीं, उनकी आत्मा का ही एक रूप थीं]। श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा था कि वे और राधा अलग नहीं हैं, बल्कि एक ही आत्मा के दो रूप हैं, इसलिए उनका प्रेम विवाह जैसे सांसारिक रिश्तों से कहीं ऊपर है। राधा-कृष्ण के प्रेम की पराकाष्ठा इतनी थी कि यदि चोट कृष्ण को लगती थी, तो पीड़ा राधा को होती थी। यह प्रेम त्याग, समर्पण और भक्ति का प्रतीक बन गया, जिसमें राधा ने कृष्ण के प्रति अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया और कृष्ण ने भी राधा को अपने हृदय में सर्वोच्च स्थान दिया।

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