श्रीकृष्णकृतं दुर्गास्तोत्रम् भगवान श्रीकृष्ण द्वारा स्वयं देवी दुर्गा की स्तुति में रचित एक स्तोत्र है। यह स्तोत्र देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए बहुत शक्तिशाली और प्रभावी है। स्तोत्र की शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण द्वारा देवी दुर्गा की सर्वोच्च शक्ति और महिमा की प्रशंसा के साथ होती है। इसके बाद वह उनसे अपने और अपने भक्तों की सभी प्रकार की हानि से रक्षा करने के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। स्तोत्र में देवी के कई गुणों, जैसे उनकी सुंदरता, शक्ति और करुणा का सुंदर और प्रभावी वर्णन है।
श्रीकृष्णकृतं दुर्गास्तोत्रम् हिंदुओं में एक बहुत ही लोकप्रिय स्तोत्र है। यह अक्सर दुर्गा पूजा और देवी दुर्गा को समर्पित अन्य त्योहारों के दौरान पढ़ा जाता है। यह उन भक्तों द्वारा भी पढ़ा जाता है जो किसी विशिष्ट आवश्यकता के लिए उनकी कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, जैसे कि हानि से सुरक्षा, अपने प्रयासों में सफलता, या अच्छी सेहत। श्रीकृष्णकृतं दुर्गास्तोत्रम् देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए एक बहुत ही शक्तिशाली और प्रभावी स्तोत्र है। यह कोई भी व्यक्ति पढ़ सकता है, चाहे उनकी उम्र, जाति या धर्म कुछ भी हो। यहाँ श्रीकृष्णकृतं दुर्गास्तोत्रम् के शुरुआती श्लोक का हिंदी अनुवाद है: हे देवी दुर्गा, आप सभी अच्छे और शुभ का अवतार हैं। आप सभी सृष्टि, पालन-पोषण और विनाश के स्रोत हैं। आप अच्छे की रक्षा करने वाली और बुराई का नाश करने वाली हैं। मैं आपके प्रति श्रद्धा और भक्ति से प्रणाम करता हूँ। इस श्लोक में, भगवान श्रीकृष्ण देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन करते हैं। वे उन्हें सभी अच्छे और शुभ का अवतार कहते हैं। वे उन्हें सृष्टि, पालन-पोषण और विनाश के स्रोत भी कहते हैं। वे उन्हें अच्छे की रक्षा करने वाली और बुराई का नाश करने वाली भी कहते हैं। श्रीकृष्णकृतं दुर्गास्तोत्रम् एक बहुत ही शक्तिशाली और प्रभावी स्तोत्र है। यह स्तोत्र देवी की कृपा प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्।
परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥
तेज:स्वरूपा परमा भक्त अनुग्रहविग्रहा।
सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया।
सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥
सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।
सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी।
त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्।
दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।
निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया।
क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती॥
श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा।
सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥
प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा।
शश्वत्कर्ममयी शक्ति : सर्वदा सर्वजीविनाम्॥
देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी।
हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥
योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्।
सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धियोगिनी॥
माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी।
भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥
ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे।
सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा॥
महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी।
रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥
वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा।
ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥
विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्।
मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥
राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी।
सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥
तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते।
कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥
दुरत्यया मे माया त्वं यया सम्मोहितं जगत्।
यया मुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति॥
इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्।
पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वाञ्छता॥
वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा।
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥
कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने।
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥
यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी।
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते॥
पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्नीभेदे च दुर्गत:,
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशय:॥
राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले।
हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥
गृहदाहे च दावागनै दस्युसैन्यसमन्विते,
स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय:॥
महादरिद्रो मूर्खश्च वर्ष स्तोत्रं पठेत्तु य:।
विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय:॥
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श्रीकृष्णकृतं दुर्गास्तोत्रम लिरिक्स Shri Krishnkrint Durga strotam Lyrics स्तोत्र संग्रह | संस्कृत-हिंदी स्त्रोत | स्त्रोत लिरिक्स हिन्दी
त्वमेवसर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी।त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्।
परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥
तेज:स्वरूपा परमा भक्त अनुग्रहविग्रहा।
सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया।
सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥
सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।
सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी।
त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्।
दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।
निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया।
क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती॥
श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा।
सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥
प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा।
शश्वत्कर्ममयी शक्ति : सर्वदा सर्वजीविनाम्॥
देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी।
हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥
योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्।
सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धियोगिनी॥
माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी।
भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥
ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे।
सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा॥
महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी।
रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥
वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा।
ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥
विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्।
मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥
राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी।
सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥
तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते।
कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥
दुरत्यया मे माया त्वं यया सम्मोहितं जगत्।
यया मुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति॥
इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्।
पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वाञ्छता॥
वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा।
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥
कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने।
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥
यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी।
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते॥
पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्नीभेदे च दुर्गत:,
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशय:॥
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हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥
गृहदाहे च दावागनै दस्युसैन्यसमन्विते,
स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय:॥
महादरिद्रो मूर्खश्च वर्ष स्तोत्रं पठेत्तु य:।
विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय:॥
त्वमेवसर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी।
त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
ओम जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।
अर्थ: हे जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा, स्वधा, तुम्हें मेरा नमस्कार।
ओम ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
अर्थ: हे देवी चामुण्डा, मैं तुम्हारे मंत्रों का जाप कर रहा/रही हूं।
ओम श्रीं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
अर्थ: हे देवी चामुण्डा, मैं तुम्हारे शुभ मंत्रों का जाप कर रहा/रही हूं।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ: हे देवी, जो सभी प्राणियों में शक्ति के रूप में विद्यमान हो, मैं तुम्हें नमस्कार करता/करती हूं।
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वमंगलमंगले। शिवे सर्वार्थ साधिके नमस्तुभ्यं नमो नमः॥
अर्थ: हे देवी दुर्गा, जो सभी मंगलों की दात्री हो, मैं तुम्हें नमस्कार करता/करती हूं।
दुर्गा माता के इन मंत्रों का जाप करने से पहले, भक्तों को अपने शरीर और मन को शुद्ध करना चाहिए। इसके लिए, भक्तों को स्नान करना चाहिए, साफ कपड़े पहनने चाहिए, और देवी दुर्गा के सामने बैठना चाहिए। भक्तों को ध्यान केंद्रित करके और देवी दुर्गा के प्रति श्रद्धा और भक्ति के साथ इन मंत्रों का जाप करना चाहिए। दुर्गा माता के इन मंत्रों का जाप करने के लिए कोई विशेष समय या स्थान निर्धारित नहीं है। भक्त इन मंत्रों का जाप किसी भी समय और किसी भी स्थान पर कर सकते हैं।
अर्थ: हे जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा, स्वधा, तुम्हें मेरा नमस्कार।
ओम ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
अर्थ: हे देवी चामुण्डा, मैं तुम्हारे मंत्रों का जाप कर रहा/रही हूं।
ओम श्रीं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
अर्थ: हे देवी चामुण्डा, मैं तुम्हारे शुभ मंत्रों का जाप कर रहा/रही हूं।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ: हे देवी, जो सभी प्राणियों में शक्ति के रूप में विद्यमान हो, मैं तुम्हें नमस्कार करता/करती हूं।
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वमंगलमंगले। शिवे सर्वार्थ साधिके नमस्तुभ्यं नमो नमः॥
अर्थ: हे देवी दुर्गा, जो सभी मंगलों की दात्री हो, मैं तुम्हें नमस्कार करता/करती हूं।
दुर्गा माता के इन मंत्रों का जाप करने से पहले, भक्तों को अपने शरीर और मन को शुद्ध करना चाहिए। इसके लिए, भक्तों को स्नान करना चाहिए, साफ कपड़े पहनने चाहिए, और देवी दुर्गा के सामने बैठना चाहिए। भक्तों को ध्यान केंद्रित करके और देवी दुर्गा के प्रति श्रद्धा और भक्ति के साथ इन मंत्रों का जाप करना चाहिए। दुर्गा माता के इन मंत्रों का जाप करने के लिए कोई विशेष समय या स्थान निर्धारित नहीं है। भक्त इन मंत्रों का जाप किसी भी समय और किसी भी स्थान पर कर सकते हैं।
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