हे शिव मेरे अपनी करुणा मुझपर भी बरसा
हे शिव मेरे अपनी करुणा
मुझपर भी बरसा
तन को तीरथ मन को
पावन गंगा घाट बना
सबका दुःख अपना दुःख समझूँ
धर्म यही हो मेरा
अवगुण सारे गुण में बदलूँ
कर्म यही हो मेरा
हे भगवान् मेरे कर्मों को
चन्दन सा महका
तन को तीरथ मन को
पावन गंगा घाट बना
मृग तृष्णा के पीछे पीछे
में तो हरदम भागा
जीवन का कुछ अर्थ ना समझा
देर से में तो जागा
इससे पहले टूट ना जाये
सांसों का धागा
तन को तीरथ मन को
पावन गंगा घाट बना
हम हैं मानव हो जाती है
हमसे भूल कभी
जब पछताए आ जाते हैं
हम तो शरण तेरी
हर लेते हो पलभर में तुम
मन का दुःख सारा
तन को तीरथ मन को
पावन गंगा घाट बना
तुमसे केवल में तो इतना
मांग रहा हूँ दाता
जन्म जन्म तक रखना मुझसे
प्रेम भरा ये नाता
हो जाये हर जन्म सफल
तू ऐसी राह दिखा
तन को तीरथ मन को
पावन गंगा घाट बना
तुम तो जानो घट घट वासी
हर मन की हर भाषा
धन्य हो मेरा जन्म जो पूरी
कर दो ये अभिलाषा
लगूं कंठ से बनकर तेरे
में रुद्राक्ष तेरा
तन को तीरथ मन को
पावन गंगा घाट बना
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