जी कबीरा रे
चालत चालत जुग भया ने
कुण बतावे धाम जी
जी कबीरा रे
चालत चालत जुग भया ने
कुण बतावे धाम जी
जी कबीरा रे
मन भेदूं को व्हाला भूलो फिरे
पाँव कोस पर गाम जी
जी कबीरा रे
मन भेदूं को व्हाला भूलो फिरे
पाँव कोस पर गाम जी
जी कबीरा रे
घृत कबीरो संत ले गयो रे
छाछ पीए संसार जी
जी कबीरा रे
घृत कबीरो संत ले गयो रे
छाछ पीए संसार जी
जी कबीरा रे
घृत लिया तोरे क्या हुआ रे
धन धणी रेवे पास जी
जी कबीरा रे
घृत लिया तोरे क्या हुआ रे
धन धणी रेवे पास जी
जी कबीरा रे
पूळा नीरू निज प्रेम रा रे
दूवो दिन रात जी
जी कबीरा रे
कुण मटकी कुण झेरना रे
कुण बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
कुण मटकी कुण झेरना रे
कुण बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
मन मटकी तन झेरना रे
सुरत बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
मन मटकी तन झेरना रे
सुरत बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
सुरत बाण गज झेलणा रे
झेल सके तो झेल जी
जी कबीरा रे
सूरा होवे तो रे सनमुख लड़िये
नहीं है कायर रो खेल जी
जी कबीरा रे
सूली के ऊपर घर हमारा
ओथ पायो विश्राम जी
जी कबीरा रे
कबीरो संत व्हाला रमी रहयो रे
आठ पहर होशियार जी
नर पछिताहुगे अंधा भजन
चेति देखि नर जमपुरि जैहै, क्यूँ बिसरौ गोब्यंदा॥
गरभ कुंडिनल जब तूँ बसता, उरध ध्याँन ल्यो लाया।
उरध ध्याँन मृत मंडलि आया, नरहरि नांव भुलाया॥
बाल विनोद छहूँ रस भीनाँ, छिन छिन बिन मोह बियापै॥
बिष अमृत पहिचांनन लागौ, पाँच भाँति रस चाखै॥
तरन तेज पर तिय मुख जोवै, सर अपसर नहीं जानैं॥
अति उदमादि महामद मातौ, पाष पुंनि न पिछानै॥
प्यंडर केस कुसुम भये धौला, सेत पलटि गई बांनीं॥
गया क्रोध मन भया जु पावस, कांम पियास मंदाँनीं॥
तूटी गाँठि दया धरम उपज्या, काया कवल कुमिलांनां॥
मरती बेर बिसूरन लागौ, फिरि पीछैं पछितांनां॥
कहै कबीर सुनहुं रे संतौ, धन माया कछू संगि न गया॥
आई तलब गोपाल राइ की, धरती सैन भया॥
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Author - Saroj Jangir
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