चालत चालत जुग भया-लिरिक्स हिंदी/हिंदी मीनिंग Chalat Chalat Jug Bhaya-Hindi Lyrics/Hindi Meaning Kabir Bhajan By Mahesha Ram Lyrics
जी कबीरा रे
चालत चालत जुग भया ने
कुण बतावे धाम जी
चालत चालत जुग भया ने
कुण बतावे धाम जी
जी कबीरा रे
चालत चालत जुग भया ने
कुण बतावे धाम जी
चालत चालत जुग भया ने
कुण बतावे धाम जी
जी कबीरा रे
मन भेदूं को व्हाला भूलो फिरे
पाँव कोस पर गाम जी
पाँव कोस पर गाम जी
जी कबीरा रे
मन भेदूं को व्हाला भूलो फिरे
पाँव कोस पर गाम जी
पाँव कोस पर गाम जी
घृत कबीरो संत ले गयो रे
छाछ पीए संसार जी
जी कबीरा रे
घृत कबीरो संत ले गयो रे
छाछ पीए संसार जी
घृत कबीरो संत ले गयो रे
छाछ पीए संसार जी
जी कबीरा रे
घृत लिया तोरे क्या हुआ रे
धन धणी रेवे पास जी
जी कबीरा रे
घृत लिया तोरे क्या हुआ रे
धन धणी रेवे पास जी
जी कबीरा रे
पूळा नीरू निज प्रेम रा रे
दूवो दिन रात जी
जी कबीरा रे
कुण मटकी कुण झेरना रे
कुण बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
कुण मटकी कुण झेरना रे
कुण बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
मन मटकी तन झेरना रे
सुरत बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
मन मटकी तन झेरना रे
सुरत बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
सुरत बाण गज झेलणा रे
झेल सके तो झेल जी
जी कबीरा रे
सूरा होवे तो रे सनमुख लड़िये
नहीं है कायर रो खेल जी
जी कबीरा रे
सूली के ऊपर घर हमारा
ओथ पायो विश्राम जी
जी कबीरा रे
कबीरो संत व्हाला रमी रहयो रे
आठ पहर होशियार जी
घृत लिया तोरे क्या हुआ रे
धन धणी रेवे पास जी
जी कबीरा रे
घृत लिया तोरे क्या हुआ रे
धन धणी रेवे पास जी
जी कबीरा रे
पूळा नीरू निज प्रेम रा रे
दूवो दिन रात जी
जी कबीरा रे
कुण मटकी कुण झेरना रे
कुण बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
कुण मटकी कुण झेरना रे
कुण बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
मन मटकी तन झेरना रे
सुरत बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
मन मटकी तन झेरना रे
सुरत बिलोवनहार जी
जी कबीरा रे
सुरत बाण गज झेलणा रे
झेल सके तो झेल जी
जी कबीरा रे
सूरा होवे तो रे सनमुख लड़िये
नहीं है कायर रो खेल जी
जी कबीरा रे
सूली के ऊपर घर हमारा
ओथ पायो विश्राम जी
जी कबीरा रे
कबीरो संत व्हाला रमी रहयो रे
आठ पहर होशियार जी
नर पछिताहुगे अंधा।
चेति देखि नर जमपुरि जैहै, क्यूँ बिसरौ गोब्यंदा॥
गरभ कुंडिनल जब तूँ बसता, उरध ध्याँन ल्यो लाया।
उरध ध्याँन मृत मंडलि आया, नरहरि नांव भुलाया॥
बाल विनोद छहूँ रस भीनाँ, छिन छिन बिन मोह बियापै॥
बिष अमृत पहिचांनन लागौ, पाँच भाँति रस चाखै॥
तरन तेज पर तिय मुख जोवै, सर अपसर नहीं जानैं॥
अति उदमादि महामद मातौ, पाष पुंनि न पिछानै॥
प्यंडर केस कुसुम भये धौला, सेत पलटि गई बांनीं॥
गया क्रोध मन भया जु पावस, कांम पियास मंदाँनीं॥
तूटी गाँठि दया धरम उपज्या, काया कवल कुमिलांनां॥
मरती बेर बिसूरन लागौ, फिरि पीछैं पछितांनां॥
कहै कबीर सुनहुं रे संतौ, धन माया कछू संगि न गया॥
आई तलब गोपाल राइ की, धरती सैन भया॥
चेति देखि नर जमपुरि जैहै, क्यूँ बिसरौ गोब्यंदा॥
गरभ कुंडिनल जब तूँ बसता, उरध ध्याँन ल्यो लाया।
उरध ध्याँन मृत मंडलि आया, नरहरि नांव भुलाया॥
बाल विनोद छहूँ रस भीनाँ, छिन छिन बिन मोह बियापै॥
बिष अमृत पहिचांनन लागौ, पाँच भाँति रस चाखै॥
तरन तेज पर तिय मुख जोवै, सर अपसर नहीं जानैं॥
अति उदमादि महामद मातौ, पाष पुंनि न पिछानै॥
प्यंडर केस कुसुम भये धौला, सेत पलटि गई बांनीं॥
गया क्रोध मन भया जु पावस, कांम पियास मंदाँनीं॥
तूटी गाँठि दया धरम उपज्या, काया कवल कुमिलांनां॥
मरती बेर बिसूरन लागौ, फिरि पीछैं पछितांनां॥
कहै कबीर सुनहुं रे संतौ, धन माया कछू संगि न गया॥
आई तलब गोपाल राइ की, धरती सैन भया॥
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