माया मुई न मन मुवा मरि मरि गया सरीर मीनिंग
माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर।
आसा त्रिष्णां ना मुई, यों कहि गया कबीर।
Or
माया मुई न मन मुवा , मरि - मरि गया सरीर ।
आसा - त्रिष्णाँ नाँ मुई , यौं कहि गया कबीर । Maaya Muee Na Man Muva, Mari-mari Gaya Sareer.
Aasa Trishnaan Na Muee, Yon Kahi Gaya Kabeer.
Or
Maaya Muee Na Man Muva , Mari - Mari Gaya Sareer .
Aasa - Trishnaan Naan Muee , Yaun Kahi Gaya Kabeer .
माया मुई न मन मुवा मरि मरि गया सरीर शब्दार्थ
मुई : समाप्त होना, मरना । Come to an end
मन मुवा : 'अहम् का अंत होना। Ego's end
मरि-मरि गया सरीर : शरीर को एक रोज समाप्त हो जाना है। The body has to die every day
आसा त्रिष्णां: आशा और तृष्णा Desire and lust
ना मुई : कभी मरते नहीं हैं। Never die
माया मुई न मन मुवा मरि मरि गया सरीर हिंदी मीनिंग
हिंदी मीनिंग: माया और और अहम् (मन ) कभी समाप्त नहीं होते हैं। आशा और तृष्णा की कभी समाप्त नहीं होते हैं, जबकि यह शरीर (मानव देह) समाप्त हो जानी है। कबीर साहेब ने माया के कई रूपों का वर्णन करते समझाया है की माया सदा ही अमूल्य मानव जीवन को समाप्त करने के लिए अपना जाल फैलाकर रखती है और जीवात्मा को अपने जाल पे फाँस कर जीवन के उद्देश्य (हरी गुण ) से विरक्त कर देती है। कबीर साहेब माया के विषय में समझाते हुए अन्य स्थान पर कहते हैं की माया अपने फंदे को लेकर बाजार में बैठी है और सभी को फांसने की फिराक में हैं, लोग उसके जाल में फँस भी जाते हैं।
लेकिन कबीर ने इसके फंदे को समझ कर काट दिया है और वह माया से मुक्त हो गया है। इसी प्रकार से कबीर साहेब ने माया को मीठी खांड भी कहा है। इस दोहे का मूल भाव है की माया कभी भी समाप्त नहीं होने वाली है। मनुष्य को इससे सावधान रहने की आवश्यकता है।
स्पष्ट है की माया सदा से यहीं पर रही है, वह स्थाई है. माया जीवन को भ्रमित करती है. साहेब ने अनेको अनेक स्थान पर जीवात्मा को समझाया है की एक रोज उसे अपने मालिक के घर पर जाना है और वही अंतिम गंतव्य है. यह जीवन, मानव जीवन केवल हरी के गुणगान के लिए मिला है. इसलिए माया के भ्रम को समझकर इससे दूर रहकर हरी का सुमिरन करना ही जीवन का उद्देश्य है.
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