त्रिसणा सींची ना बुझै दिन दिन बढ़ती जाइ मीनिंग Trishna Seenchi Na Bujhe Hindi Meaning Kabir Doha Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित
त्रिसणा सींची ना बुझै, दिन दिन बढ़ती जाइ।
जवासा के रूख़ ज्यूं, घणा मेहां कुमिलाइ ॥
Or
त्रिसणा सींची ना बुझै, दिन दिन बधती जाइ ।
जवासा के रूष ज्यूं, घण मेहां कुमिलाइ ॥
Trisana Seenchee Na Bujhai, Din Din Badhatee Jai.
Javaasa Ke Rookh Jyoon, Ghana Mehaan Kumilai .
Or
Trisana Seenchee Na Bujhai, Din Din Badhatee Jai.
Javaasa Ke Roosh Jyoon, Ghan Mehaan Kumilai .
जवासा के रूख़ ज्यूं, घणा मेहां कुमिलाइ ॥
Or
त्रिसणा सींची ना बुझै, दिन दिन बधती जाइ ।
जवासा के रूष ज्यूं, घण मेहां कुमिलाइ ॥
Trisana Seenchee Na Bujhai, Din Din Badhatee Jai.
Javaasa Ke Rookh Jyoon, Ghana Mehaan Kumilai .
Or
Trisana Seenchee Na Bujhai, Din Din Badhatee Jai.
Javaasa Ke Roosh Jyoon, Ghan Mehaan Kumilai .
त्रिसणा सींची ना बुझै शब्दार्थ Trishna Seenchi Na Bujhe Word Meaning in Hindi
त्रिसणा : तृषा Lust/Desire माया का एक रूप.सींची : तृप्त करना, Fulfill पूर्ण करना.
जवासा : एक कांटेदार पौधा जिसकी पत्तियां बरसात में गिर जाती हैं। A Kind of Plant (Medically Used Plant 'Jawasa')
रूंख : पौधा (अक्षरश -सूखा पेड़) Plant
घणां मेहा : अधिक बरसात, Excess Rain
कुमिलाइ : मुरझा जाना, Wither
त्रिसणा सींची ना बुझै हिंदी मीनिंग Trishna Seenchi Na Bujhe Meaning in Hindi (कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित )
इस दोहे का हिंदी भावार्थ : तृष्णा, आशा और कामना ये सभी माया के ही रूप हैं जो व्यक्ति को अपने जाल में फाँस लेते हैं। इनको तृप्त करने / पूरा करने पर ये और अधिक बढ़ जाती हैं। व्यक्ति सोचता है की इच्छाओं की पूर्ति करने के उपरान्त उसे संतुष्टि मिलेगी परन्तु ऐसा नहीं है, यह पूर्ति के उपरान्त अधिक गति से बढती ही चली जाती हैं और व्यक्ति इनको पूर्ण करने में लगा रहता है। उदाहरण स्वरुप जैसे जवासे का पौधा अधिक बरसात होने पर कुछ समय के लिए मुरझा जाता है, समाप्त नहीं होता है और फिर से हरा होने लग जाता है, इसी प्रकार से तृष्णा की पूर्ति हो जाने पर वह समाप्त होने के बजाय बढ़ने लगती हैं।
भाव है की तृष्णा और आशा, कामना का ऐसा जाल है जिससे व्यक्ति को दूर रहना चाहिए और सावधान भी क्यों की इनकी पूर्ति संभव नहीं है। आशा और तृष्णा जो माया का ही रूप होते हैं, इनको सींचने/पूर्ण करने के उपरान्त ये अधिक बढ़ते ही चले जाते हैं. जीवन यापन करने के लिए जो जरुरी है उसे तो समझा जा सकता है लेकिन अहम को शांत करने के लिए अधिक से और अधिक जुटाना ही तृष्णा है. यह जीवन माया के संग्रह के लिए नहीं अपितु हरी सुमिरन के लिए मिला है. हरी का सुमिरन भी सांकेतिक या भौतिक रूप से दिखावटी नहीं बल्कि सच्चे हृदय से होना चाहिए.
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