कबीर काली सुंदरी भई सो पूरण ब्रह्म मीनिंग
कबीर काली सुंदरी, भई सो पूरण ब्रह्म।
सुर नर मुनि भरमायके, कोई ना जाने मर्म।।
Kabaiair Kaalaiai Sundaraiai, Bhaiai So Pooran Brahm.
Sur Nar Muni Bharamaayakai, Koaiai Na Jaanai Marm.
काली सुंदरी : काली स्याही से लिखे हुए शब्द।سیاہی کالی سندری
भई सो पूरन ब्रह्म : सम्पूर्ण सत्य / परम ब्रह्म। ملك
सुर नर मुनि : ज्ञानी जन। گیانی a sage, a wiseman, philosopher
भरमायके : भ्रम का शिकार हो गए हैं।
मर्म : वास्तिकता। بھید secret, mystery दोहे की हिंदी में व्याख्या : शास्त्रों और धार्मिक ग्रंथों में लिखे हुए काली स्याही के शब्द स्वंय ही परमब्रह्म बनकर बैठ गए हैं। ज्ञानीजन, सतगुणी, तमगुणी, रजोगुणी सबको अपने भ्रम में उलझकर रख छोड़ा है। इस भरम के शिकार होकर किसी ने भी मर्म को प्राप्त नहीं किया है।
आशय है की सुंदर शब्दों से निर्मित शास्त्र को लोग परम ब्रह्म समझ बैठे हैं, जबकि यह उचित नहीं है। इस फरेब में सुर नर और मुनि तक फँस चुके हैं, लेकिन वो मर्म को नहीं जानते हैं। कबीर साहेब ध्यान आकृष्ट कराना चाहते हैं की सच्ची मानवता, पवित्र हृदय और सदाचार ही इश्वर प्राप्ति का आधार हैं।
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