माला फेरत जुग गया गया न मन का फेर मीनिंग
कबीर के दोहों की व्याख्या हिंदी में
माला फेरत जुग गया, गया न मन फेर,
कर का मनका डारि के मन का मनका फेर।
Maala Pherat Jug Gaya, Gaya Na Man Pher,
Kar Ka Manaka Daari Ke Man Ka Manaka Pher.
माला फेरत : माला को हाथों में लेकर फेरना तस्बीह تسبیح rosary, chaplet of beads, string of beads
जुग गया : बरसों बीत जाना, برس year/ period/
मन का फेर : मन के जंजाल, मन में व्याप्त माया की लालसा और तृष्णा,
कर का मनका : हाथों की माला (मनका-माला के मणके ) तस्बीह تسبیح
डारि के : फ़ेंक के, پھینکنا to throwaway, to reject
मन का मनका फेर : मन से ईश्वर की भक्ति करना
दोहे का हिंदी मीनिंग: व्यक्ति भक्ति में भी ढोंग करता है, दिखावा करता है जिसे ख़ारिज करते हुए कबीर साहेब की वाणी है की जब तक मन से भक्ति नहीं की जाए तब तक हाथों से माला के मनके को फेरने से कोई फायदा नहीं है। मालिक का सुमिरन तो मन से किया जाना ही सार्थक होता है। मन के अंदर माया का जंजाल है तो माला फेरने से मन का फेर कभी समाप्त नहीं होता चाहे माला फेरते बरसों बीत जाएँ। भाव है की ईश्वर का सुमिरन हृदय से किया जाना चाहिए अन्यथा माला फेर कर ढोंग करने से कोई लाभ नहीं होगा। इस दोहे में यमक अलंकार का उपयोग किया गया है. बाबा बुल्ले शाह जी का भी कुछ इसी तरह से विचार है -
तस्बीह फिरि पर दिल न फिरेया,
लेना की तस्बीह हथ फेर के ?
सर ते टोपी ते नीयत खोटी,
लेना की टोपी सर धर के ?
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