अब थारा लाल समन्दरा माय लिरिक्स हिंदी Ab Thara Lal Samandara Maay-Lyrics Hindi Kabir Bhajan By Kaluram Bamaniya Lyrics Hindi
मैं मरजीवा समुद्र का,
एजी मैं मरजीवा समुद्र का,
डुबकी मारी एक
मुट्ठी लाया ज्ञान की, (और ) ता में वस्तु अनेक
(जो ) बूँद पड़ा दरियाव में सब कोई जानत है
समुद्र समाना बूँद में, जाने बिरला कोई
अब थारा लाल समन्दरा माय
हो मरजीवा कोई लाल ल्यावे हो
मरजीवों का देस अजब है,
नुगुरा थाग ना पाया गुराजी
मरजीवा री गति सुगुरा जाने,
अब इ नुगुरा कईं भुरमावे
हो मरजीवा कोई लाल ल्यावे हो
काची माटी का कुंभ बनाया
जिन में भंवर लुभाया गुराजी
झूठी आ काया, झूठी आ माया
अब ई झूठा ई धंधे लगाया
हो मरजीवा कोई लाल ल्यावे हो
आप तजी ने बैठी गया समुंद में
मोतीड़ा से सुरत लगाया गुराजी
हीरो हीरा लाल पदारथ ल्याया
अब यो समुंदर छोड़्यो नहीं जाय
हो मरजीवा कोई लाल ल्यावे हो
हर दम का सौदा कर ले रे बंदे
सोहम ताल बजाया गुराजी
रत्ती एक स्वांसा हेरो इना घट में
तब यह पवन पुरुष परकाशेगा
हो मरजीवा कोई लाल ल्यावे हो
नाथ गुलाबी म्हाने समरथ मिल गया
धन गुरु मोहे समझाया गुराजी
भवानी नाथ शरण सदगुरु की
अब यो नेकी तो साहिबो निभावे
हो मरजीवा कोई लाल ल्यावे हो
एजी मैं मरजीवा समुद्र का,
डुबकी मारी एक
मुट्ठी लाया ज्ञान की, (और ) ता में वस्तु अनेक
(जो ) बूँद पड़ा दरियाव में सब कोई जानत है
समुद्र समाना बूँद में, जाने बिरला कोई
अब थारा लाल समन्दरा माय
हो मरजीवा कोई लाल ल्यावे हो
मरजीवों का देस अजब है,
नुगुरा थाग ना पाया गुराजी
मरजीवा री गति सुगुरा जाने,
अब इ नुगुरा कईं भुरमावे
हो मरजीवा कोई लाल ल्यावे हो
काची माटी का कुंभ बनाया
जिन में भंवर लुभाया गुराजी
झूठी आ काया, झूठी आ माया
अब ई झूठा ई धंधे लगाया
हो मरजीवा कोई लाल ल्यावे हो
आप तजी ने बैठी गया समुंद में
मोतीड़ा से सुरत लगाया गुराजी
हीरो हीरा लाल पदारथ ल्याया
अब यो समुंदर छोड़्यो नहीं जाय
हो मरजीवा कोई लाल ल्यावे हो
हर दम का सौदा कर ले रे बंदे
सोहम ताल बजाया गुराजी
रत्ती एक स्वांसा हेरो इना घट में
तब यह पवन पुरुष परकाशेगा
हो मरजीवा कोई लाल ल्यावे हो
नाथ गुलाबी म्हाने समरथ मिल गया
धन गुरु मोहे समझाया गुराजी
भवानी नाथ शरण सदगुरु की
अब यो नेकी तो साहिबो निभावे
हो मरजीवा कोई लाल ल्यावे हो
'Ab Thaara Laal Samandada Ra' by Kaluram Bamaniya
जोलहा बीनहु हो हरि नामा, जाके सुर नर मुनि धरैं ध्याना
ताना तनै को अहुठा लीन्हा, चरषी चारी बेदा
सर षूटी एक राम नरायन, पूरन प्रगटे कामा
भवसागर एक कठवत कीन्हा । तामें मांडी साना
माडी का तन माडि रहो है । माडी बिरलै जाना
चांद सूर्य दुइ गोडा कीन्हा । माँझदीप कियो माँझा
त्रिभुवन नाथ जो माँजन लागे, स्याम मरोरिया दीन्हा
पाई के जब भरना लीन्हा, वै बाँधन को रामा
वा भरि तिहु लोकहि बाँधे, कोई न रहत उबाना
तीनि लोक एककरि गह कींन्हा, दिगमग कीन्हो ताना
आदि पुरुष बैठावन बैठे, कबिरा ज्योति समाना
ताना तनै को अहुठा लीन्हा, चरषी चारी बेदा
सर षूटी एक राम नरायन, पूरन प्रगटे कामा
भवसागर एक कठवत कीन्हा । तामें मांडी साना
माडी का तन माडि रहो है । माडी बिरलै जाना
चांद सूर्य दुइ गोडा कीन्हा । माँझदीप कियो माँझा
त्रिभुवन नाथ जो माँजन लागे, स्याम मरोरिया दीन्हा
पाई के जब भरना लीन्हा, वै बाँधन को रामा
वा भरि तिहु लोकहि बाँधे, कोई न रहत उबाना
तीनि लोक एककरि गह कींन्हा, दिगमग कीन्हो ताना
आदि पुरुष बैठावन बैठे, कबिरा ज्योति समाना
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