
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
गुरु शरणगति छाडि के करै भरोसा दोहे का मीनिंग
गुरु की शरण को छोड़ कर यदि कोई अन्य किसी पर भी भरोसा करता है और सोचता है की उसे सुख सम्पति मिल जाएगी तो यह उसकी भूल है। सुख संम्पत्ति तो दूर की बात रही ऐसे जीव के लिए तो नरक में ही जगह मिलेगी। अन्य स्थान पर गुरु को गोविन्द के समान बताया गया है क्योंकि गुरु ही जीव को मोह माया से निकाल करके उसे सद्मार्ग की और अग्रसर करता है /गोविन्द का पता बताता है। बगैर गुरु के जीव मोह माया में ही फँस कर रह जाता है।