कबीर भाठी कलाल की बहुतक बैठे मीनिंग
कबीर भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आई।
सिर सौंपै सोई पिवै, नहीं तो पिया न जाइ ।।
Kabeer Bhaathee Kalaal Kee, Bahutak Baithe Aaee.
Sir Saumpai Soee Pivai, Nahin To Piya Na Jai
शब्दार्थ : भाठी -शराब की भट्ठी, बहुतक -बहुत से, सिर-अभिमान और स्वंय के होने का भाव, कलाल -गुरु।
कबीर भाठी कलाल की बहुतक बैठे आई मीनिंग
दोहे की हिंदी मीनिंग: जो व्यक्ति अपने होने का भाव, अस्तित्व को पूर्ण रूप से समाप्त कर देता है वही कलाल की भट्टी से (गुरु ) राम रस (शराब ) का सेवन कर सकता है अन्य लोग मात्र बैठ कर देखते रहते हैं उनके लिए राम रस को पीना सम्भव नहीं होता है। भाव है की भक्ति रस को कोई बिरला ही पान कर सकता है। भक्ति को देखना और उसको आचरण में उतरना दो पृथक दृष्टिकोण हैं।
भक्ति को प्राप्त करना कोई आसान काम नहीं है, स्वंय को समाप्त करना पड़ता है और माया के जाल से बाहर निकलना पड़ता है। कबीर साहेब ने लोगों की आम भाषा का प्रयोग किया है। तात्कालिक समाज में शराब का सेवन आम लोगों से जुड़ा हुआ था, इसीलिए गुरु को कलाल कहकर भक्ति रस की महिमा को समझाने की कोशिश की गयी है।
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