खुलि खेलो संसार में बांधि न सक्कै कोय मीनिंग
खुलि खेलो संसार में बांधि न सक्कै कोय।
घाट जगाती क्या करै, सिर पर पोट न होय।।
Khuli Khelo Sansaar Mein Baandhi Na Sakkai Koy.
Ghaat Jagaatee Kya Karai, Sir Par Pot Na Hoy. खुलि खेलो संसार में बांधि न सक्कै कोय मीनिंग
यदि संसार में उन्मुक्त रूप से जीवन का आनंद लेना है तो अपने सर से माया, लालच और तृष्णा की गठरी को फ़ेंक दो। जब तुम्हारे सर पर लालच और माया की गठरी नहीं होगी तो घाट घटाती ( चुंगी लेने वाला ) तुम्हारा क्या कर सकेगा क्योंकि तुम्हारे पास कुछ है ही नहीं।
भाव है की इस जीवन का आनंद वही व्यक्ति उठा सकता है जो तृष्णा और माया के जाल से मुक्त हो चुका है।
माया तजूं तजी नहीं जाई।
फिरि फिरि माया मोहिं लपटाई।
माया आदर माया मान । माया नहीं तहाँ ब्रह्म ज्ञान ।
माया रस माया कर जांन। माया कारन तर्जे परान ।
माया जप तप माया जोग। माया बांधे सबही लोग।। माया का त्याग संभव नहीं है क्योंकि यह हर स्थान पर बैठी हुयी है। मान सम्मान में माया है, माया जप तप और माया जोग है, लकिन जहाँ माया है वहा ब्रह्म ज्ञान नहीं है। माया के विवश होकर प्राणी अपने जीवन के अमूल्य समय को व्यर्थ में गँवा देता है और फिर हाथ मलता रह जाता है।
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