तन भीतरि मन मानियाँ बाहरि कहा न जाइ हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

तन भीतरि मन मानियाँ बाहरि कहा न जाइ हिंदी मीनिंग Tan Bhitari Man Maniya Bahari Kaha Na Jayi Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit


तन भीतरि मन मानियाँ बाहरि कहा न जाइ हिंदी मीनिंग Tan Bhitari Man Maniya Bahari Kaha Na Jayi Hindi Meaning
 
तन भीतरि मन मानियाँ, बाहरि कहा न जाइ।
ज्वाला तै फिरि जल भया, बझी बलंती लाइ।।
 
Tan Bheetari Man Maaniyaan, Baahari Kaha Na Jai.
Jvaala Tai Phiri Jal Bhaya, Bajhee Balantee Lai 
 
 
दोहे के शब्दार्थ : तन = शरीर, भीतरी -अन्दर, मानियाँ = मान गया, बलंती = जलती, लाइ -आग (लाय लगना )

दोहे का हिंदी मीनिंग
: ईश्वर से परिचय हो जाने के बाद शरीर में शान्ति और ठहराव आ गया है। जो मन पहले बाहर भटकता फिरता था अब वह मन अंदर ही मान गया है, शांत हो गया है। माया जनित विषय वासनाओं और कामनाओं की ज्वाला अब शीतल जल की भांति सुखद हो गयी है। हरी रस का जिसने भी पान कर लिया है वह अंतर्मुखी हो जाता है। बाहर क्यों भटकता है ? बाहर भटकने का मूल कारण अंदर की ही कमजोरी होती है। अंदर बैठे हुए को बाहर क्यों ढूंढना। यह अज्ञान का अंधकार माया के कारण ही पैदा होता है। 
 
जब सतगुरु ज्ञान का दीपक जलाते हैं तब जीव को ज्ञान हो जाता है और उसकी सभी ज्वाला शांत हो जाती हैं। विस्तृत रूप से इस दोहे को समझे तो तीर्थ, मंदिर मस्जिद, कर्मकांड आदि में व्यक्ति सत्य को ढूंढता है। यह तब तक ही होता है जब तक उसे बात समझ में नहीं आती है। जब रहस्य समझ में आ जाता है तब उसे ज्ञान होता है की वह तो अंदर ही बैठा है। अहम् के समाप्त हो जाने के उपरांत उसे हरी का आभास होने लगता है और वह उससे मिलन के जतन शुरू करता है जो एक लम्बा मार्ग है। इस दोहे में रूपकातिश्योक्ति और अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।

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