कबीर मन गाफिल भया सुमिरण मीनिंग
कबीर मन गाफिल भया सुमिरण लागै नाहिं मीनिंग
कबीर मन गाफिल भया, सुमिरण लागै नाहिं।घणीं सहैगा सासनाँ, जम की दरगह माहिं॥
Kabir Man Gafil Bhaya, Sumirn Laage Nahi,
Ghani Sahega Sasana, Jam Ki Dargah Mahi.
Kabir Man Gafil Bhaya, Sumirn Laage Nahi,
Ghani Sahega Sasana, Jam Ki Dargah Mahi.
मन : चित्त, मन.
गाफिल : गाफिल होना, भ्रम का शिकार होना,
भया : हुआ.
सुमिरण : स्मरण, सुमिरण.
लागै नाहिं : लगा नहीं.
घणीं : बहुत ही अधिक.
सहैगा : सहना पड़ेगा.
सासनाँ : सांसत, कष्ट, वेदना.
जम की : यम की.
दरगह : दरबार,
माहिं : के अन्दर,
गाफिल : गाफिल होना, भ्रम का शिकार होना,
भया : हुआ.
सुमिरण : स्मरण, सुमिरण.
लागै नाहिं : लगा नहीं.
घणीं : बहुत ही अधिक.
सहैगा : सहना पड़ेगा.
सासनाँ : सांसत, कष्ट, वेदना.
जम की : यम की.
दरगह : दरबार,
माहिं : के अन्दर,
कबीर साहेब की वाणी है की साधक तुम इश्वर सुमिरण के प्रति गफलत मत करो, पूर्ण निष्ठां से इश्वर के नाम का सुमिरण करो, चित्त लगाकर ध्यान लगाओं. तुम गाफिल मत रहो, यह माया किसी का साथ निभाने वाली नहीं है. एक रोज यह सभी का साथ छोड़ देती है. यम के दरबार में तो राम नाम की पूंजी ही काम आने वाली है. अतः साधक को चाहिए की वे आत्मिक अनुशाशन पर ध्यान दे और पूर्ण निष्ठां और समर्पण से हरी की भक्ति को करे. भक्ति ही कर्तव्य है जीव का यदि वह अपने कर्तव्य मार्ग से विमुख होता है तो अवश्य ही वह संताप और कष्ट का भागीदार होगा. अतः सांसारिक सुख, विषय विकारों के रस भोग में मस्त मत बनों और हरी के नाम सुमिरण का महत्त्व समझो एंव हरी के नाम का सुमिरण करो जो मुक्ति का मार्ग है, नहीं तो यम के दरबार में अवश्य ही कष्ट सहन करने पड़ेंगे.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |